राज अपने भी हमसे छुपाने चले हैं | Raaz Apne
राज अपने भी हमसे छुपाने चले हैं
लीक से हमको हटाने चले हैं,
रीत नई वो निभाने चले हैं।
मिटा ना सकेंगे निशां वो हमारे,
दिलों में दूरियां बनाने चले हैं।
महफिल जमाकर भुलाने चले हैं,
यादों से अपनी मिटाने चले हैं।
लेखनी का जादू भुला ना सकेंगे,
तेवर यूं रूखा सा दिखाने चले हैं।
शायद कहीं चेतना जगाने चले हैं,
कविता की कड़ियां बनाने चले हैं।
सुदर्शन शान से लिखो रचनाएं,
हम बैठे बिठाये सुनाने चले हैं।
अपनी डफली राग वो गाने चले हैं,
मन ही मन में खुशियां मनाने चले हैं।
दिखावे की दुनिया समझ ले सुदर्शन,
राज अपने भी हमसे छुपाने चले हैं।
साथ लेके चले तो कुछ कर दिखायेंगे,
काव्य जगत में नई चेतना जगाएंगे।
मरजी तेरी ही चलती मुरली मनोहर,
तेरी दर पे बैठे भजन तेरे गाएंगे।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )