समझो तो जग में हर कोई अपना | Samjho to
समझो तो जग में हर कोई अपना
( Samjho to jag mein har koi apna )
समझो तो जग में हर कोई अपना
समझो तो यह एक प्यारा सपना
समझो जरा रिश्तो की पावन डोर
समझो यह महकती सुहानी भोर
प्यार के वो मधुर मधुर तराने
अनमोल मोती स्नेह के बहाने
अपनापन अनमोल जताकर
रच दो जरा नवगीत सुहाने
समझो सबकी मनोकामना
शुभभाव सुंदर शुभकामना
सबको प्रेम जताकर देखो
अपना जरा बनाकर देखो
परचम खुशियों का लहराओ
प्रेम सुधा जग में बिखराओ
घर आंगन में प्यार के मोती
रिश्तो का चमन महकाओ
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )