हे माँ ! सरस्वती वरदायिनी ! | Saraswati Vandana
हे माँ ! सरस्वती वरदायिनी !
( He Maa ! Saraswati Varadayini ! )
हे माँ ! सरस्वती वरदायिनी !
जगत चेतना बोध प्रदायिनी
वीणा पाणी हंस वाहिनी
जनमानस उरलोक निवासिनि
अपने कल्याणी आँचल में
मुझको लेकर पावन कर दो !
ध्यान तुम्हारा कर पाऊॅं मैं
शरण तुम्हारी आ पाऊॅं मैं
चरण तुम्हारे लग कर माता !
पुत्र तुम्हारा बन पाऊॅं मैं
इस पावन ऑंचल की छाया
मेरे विकल शीश पर धर दो !
संघर्षों नर संहारों की
जग में आगे बात ना रहे
मानव बस मानव कहलाये
उसकी कोई जात ना रहे
अलख जगाने अपने पन की
मुझे साधनाओं से भर दो !
प्रज्ञा और विवेक दायिनी
सत् चित् के आयाम जगाकर
अनिर्बाच्य आनन्द प्रदायिनी
सतत प्रेरणाऍं प्रदान कर
मेरे मन मानस वाणी को
श्रेष्ठ कामनाओं के वर दो !
सजग चेतना रूप धारिणी
बुध मंगल विज्ञान स्वरूपा
सतत जीव जीवन को देती
हो आत्मिक उत्थान अनूपा
शुभद प्रेरणाएँ प्रदान कर
इस अन्तस् को ऊर्ध्वित कर दो !
माॅं ! तुम गायत्री तुम लक्ष्मी
तुम्ही शारदा बन दुख हरती
तुम ही दुर्गा तुम ही काली
बनकर जग की रक्षा करती
हे माॅं ! हम मानस पुत्रों पर
अपना ममता ऑंचल धर दो
जगत चराचर में तुमने ही
व्याप्त किया है जीवन का क्रम
प्राणों की तुम ही कारक हो
तुम्हीं प्रेरणा तुम ही मतिभ्रम
धारण यह आत्माहित मानस
शुभ संकल्प करे यह वर दो !
हर दुखिया मन मुझको पाकर
पाये सजग सांत्वना अनुभव
मेरे शब्द अस्त्र से हो हर
दुख पीड़ा का कठिन पराभव
जो जगहित में सृजित हुए, उस
हर अक्षर को अक्षर कर दो!
त्याग तपस्या औ’ उदारता
के धन कोष बना पाऊॅं मैं
सदा सजग सत्कर्मों से यह
प्रिय संसार सजा पाऊॅं मैं
मुझे सत्य का रूप बना दो
विमल चेतनाओं से भर दो !
हे माँ ! सरस्वती वर दायिनी
निष्कम्पित मन का तुम वर दो !
कवि : मनोहर चौबे “आकाश”
19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .
482 001
( मध्य प्रदेश )