सावन

सावन | Sawn par Kavita

सावन

( Sawan )

सावन सरस सुखमय सुधा बरसा रहा,
कलियन के संग मधुकर बहुत हर्षा रहा।।

 

नभ मेघ गर्जत दामिनी द्युतिया रही,
प्रिय कंत केहि अपराध बस न आ रहा।।

 

ज्येष्ठ की सूखी धरा तरुणित हुयी,
मोरनी संग मोर बहु सुख पा रहा।।

 

बारिश की शीतल बूंदें तन जला रही,
हे महानिष्ठुर ! तूं तरस न खा रहा।

 

पुरवइया की झकोर दीप बुझा रही,
पपिहा पिउ पिउ प्रणय पीर बढ़ा रहा।।

 

अश्रुमोती भी समझ न पाये तुम,
शेष जीवन व्यर्थ में ही जा रहा।।

कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-नक्कूपुर, वि०खं०-छानबे, जनपद
मीरजापुर ( उत्तर प्रदेश )

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