सावन | Sawn par Kavita
सावन
( Sawan )
सावन सरस सुखमय सुधा बरसा रहा,
कलियन के संग मधुकर बहुत हर्षा रहा।।
नभ मेघ गर्जत दामिनी द्युतिया रही,
प्रिय कंत केहि अपराध बस न आ रहा।।
ज्येष्ठ की सूखी धरा तरुणित हुयी,
मोरनी संग मोर बहु सुख पा रहा।।
बारिश की शीतल बूंदें तन जला रही,
हे महानिष्ठुर ! तूं तरस न खा रहा।
पुरवइया की झकोर दीप बुझा रही,
पपिहा पिउ पिउ प्रणय पीर बढ़ा रहा।।
अश्रुमोती भी समझ न पाये तुम,
शेष जीवन व्यर्थ में ही जा रहा।।