शिक्षा के हाल | Shiksha ke Haal
शिक्षा के हाल
( Shiksha ke haal )
बड़का घराना के हई मैडम
समय से कहियो ना आईला
आवते दू गो लड़िका पेठाईला
कुर्सी दू गो मंगवाईला
एगो पर अपने बैठम
एगो पर बैग धरवाईला!
फेर निकाल के मोबाईल
कान में सटाईला…
ना जाने केकरा से, घंटो,
घिसिर पिटिर बतियाईला?
अतने में टिफिन हो जाला…
बैग उठाके चल दीला घरे,
भाड़ में गेल पढ़ाई लिखाई
बचवन के!
एकर कवनो टेंशन उनका नईखे
पूरा मिल जाता तनखाह जे समय से।
फेर टिफिन बाद जो आईला
रटो रे ! गिनती पहाड़ा?
कहके,
आराम कुर्सी पर फरमाईला।
चार बजे घंटी बजते फुर्र ऊंहाके हो जाईला…
का होखी भविष्य होनहार के?
जब ई रवैया रही खेवनहार के
लेखक–मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।