श्री कृष्ण जन्म-अष्टमी | Shri Krishna Janm Asthami Kavita
श्री कृष्ण जन्म-अष्टमी
( Shri Krishna Janm Asthami )
जन्मअष्टमी उत्सव है, जय कृष्ण कन्हैया लाल की |
1. नन्हा कान्हां कृष्णा कन्हैया, माँ यसोदा का दुलारा है |
प्यारी सूरत माखन की चोरी, सारे गोकुल को प्यारा है |
पूतना,अजगर को तार दिया, कई दैत्यों को भी मारा है |
किए बड़े-बड़े कई चमत्कार, सारे जग का रखवाला है |
जन्मअष्टमी उत्सव है, जय कृष्ण कन्हैया लाल की |
2. गाय चाराते मित्रों के संग, मिल जुल खाते पीते हैं |
चोरी करते मिल सखा संग, पर कान्हां पकड़े जाते हैं |
चोरी मे भी प्रेम भरा है, मिल ग्वालिन उन्हे सताती हैं |
नाच नचातीं मुख में माखन, यशुदा सम्मुख ले जातीं हैं |
जन्मअष्टमी उत्सव है, जय कृष्ण कन्हैया लाल की |
3. डांट पिटे कान्हां को जब-जब, उसमे भी आनन्द मिले |
ऐसी दिव्य अलौकिक सूरत, बाल रुप मे परमानन्द मिले |
नहीं ऊँच-नीच का भेद कहीं, सब को एक समान रखें |
मीठी मधुर बजाते मुरली, जिस पर हैं सब के प्रान बसे |
जन्मअष्टमी उत्सव है, जय कृष्ण कन्हैया लाल की |
4. राधा से श्री कृष्ण प्रेम की, होड लगी सब सखियों मे |
मेरा कान्हां कान्हां मेरा, कृष्ण प्रीत भरी सब अंखियों मे |
एक साथ और एक घडी मे, एक जगह एकत्र किया |
कृष्ण एक से अनेक हुए, सब के साथ मे नृत्य किया |
जन्मअष्टमी उत्सव है, जय कृष्ण कन्हैया लाल की |
5. एक बार राजा इन्द्र को, गुरूर हुआ अपने बल मे |
आंधी पानी तूफानों से, गोवर्धन पर्वत उठाया पल मे |
कंस डरा फिर छल-कपट से, कान्हां को मथुरा बुलबाया |
किया कंस बध मथुरा तारी, तब से तारणहार कहलाया |
जन्मअष्टमी उत्सव है, जय कृष्ण कन्हैया लाल की |
6. मित्र को बिन मांगे सब दे दिया, मित्रता की मिशाल बने |
द्रौपदी की रक्षा अर्जुन को गीता, पांडवो की भी ढ़ाल बने |
लाखों कला-नाम कृष्ण के, मुझे नहीं समझ की बखान करूँ |
श्री कृष्ण लीला बड़ी सुहानी, मैं कृष्ण चरण नत्-शीश करूँ |
जन्मअष्टमी उत्सव है, जय कृष्ण कन्हैया लाल की |
लेखक: सुदीश भारतवास