सिक्का

( Sikka  )

 

सिक्का उछालकर देखो
कभी सिक्का थमाकर देखो
समझ आ जायेगी जिंदगी
कभी खुद को भी संभालकर तो देखो….

ये रौनक ,ये चांदनी
ढल जायेगी उम्र की तरह
दिन भी बदल जायेगा रात मे ही
ढलती शाम की तरह….

पसीना बहाकर तो देखो
गंध स्वेद की चखकर तो देखो
कभी रोटी की कीमत को भी
आजमाकर तो देखो…..

बदलते वक्त के साथ धारा बनकर तो देखो
जहाजों मे घूमे तो हो बहुत
कभी मोजों के संग तैरकर भी तो देखो….

समय के साथ चलना सीख लो अब तुम भी
होती है सीमा हर बात की प्यारे
अब हर बात को समझकर भी तो देखो….

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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