स्नेह सुधा बरसाने वाली
स्नेह सुधा बरसाने वाली
मन मन्दिर अपना है खाली,
दिल का सिंहासन भी खाली।
तरुणी कहां छुपी जा बैठी
स्नेह सुधा बरसाने वाली।।
मन को तुम भरमाने वाली,
दिल को तुम तरसाने वाली।
तरुणी कहां छुपी जा बैठी,
स्नेह सुधा बरसाने वाली।।
चंचल चितवन से तुम अपने,
अनुपम नाच नचाने वाली।
तरुणी कहां छुपी जा बैठी,
स्नेह सुधा बरसाने वाली।।
ओठ गुलाबी आंखें काली,
लट घुंघराले अदा निराली।
तरुणी कहां छुपी जा बैठी,
स्नेह सुधा बरसाने वाली।।
मदमस्तचाल है बात निराली,
गोरे तन पर छटा निराली।
तरुणी कहां छुपी जा बैठी,
स्नेह सुधा बरसाने वाली।।
श्याम केश आंचल सतरंगी,
तेरी अनुपम छटा निराली।।
तरुणी कहां छुपी जा बैठी,
स्नेह सुधा बर साने वाली।।
मन हर्षित तन पुलकित करदे,
स्मृति तेरी बड़ी निराली।
तरुणी कहां छुपी जा बैठी,
अंतस्थल हुलसाने वाली।
कमलेश विष्णु सिंह “जिज्ञासु”
यह भी पढ़ें :-