सोचा नहीं था हम इस कदर जाएंगे
सोचा नहीं था हम इस कदर जाएंगे
सोचा नहीं था हम इस कदर जाएंगे
यहाँ से भी हम क्या बे-क़रार जाएंगे
एक रात भी अपने बस में नहीं है
यानी गुज़रते थे, आज भी गुजर जाएंगे
क्या अजीब दुनियादारी है हमारी
ज़िंदा दिल वाले आए तो मर जाएंगे
बे-इंतिहा मुहब्बत का क्या सिला है
सोच कर भी लोग यहाँ डर जाएंगे
हम अकेले नहीं जो यहाँ से बे-खबर जाएंगे
अच्छा है, ‘अनंत’ आप भी तो बे-खबर जाएंगे
?
शायर: स्वामी ध्यान अनंता
( चितवन, नेपाल )
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