Subah-O-Shaam

बरसे है सुब्हो-शाम | Subah-O-Shaam

बरसे है सुब्हो-शाम

( Barse hai Subah-O-Shaam ) 

 

वो लग रहे हैं मुझको परेशान आजकल
आफत में आ गई है मेरी जान आजकल

ज़ल्फ़ों से यह हवा की फ़कत गुफ्तगू नहीं
बरसे है सुब्हो-शाम का फ़ैज़ान आजकल

हैरत है पूछते हैं वही दिल का हालचाल
जो दिल की सल्तनत के हैं सुल्तान आजकल

यारो ज़रा संभाल के कश्ती चलाइए
तूफां के हर नफ़स ही हैं इमकान आजकल

हर ग़म को जैसे मेरी हो सदियों से जुस्तजू
हर ग़म से हो रही है यूँ पहचान आजकल

कुछ सरफिरों ने ऐसे लगाये हैं दाग़े-दिल
दामन बचायें कैसे निगहबान आजकल

हो उनके रूबरू ये ग़ज़लगोई किस तरह
शिद्द्त से यह ही दिल में है अरमान आजकल

पढ़ता नहीं किताब ग़ज़ल की कोई यहाँ
मैं लिख के हो रहा हूँ पशेमान आजकल

साग़र ये उनके जाने से क्या माजरा हुआ
दुनिया ही लग रही है बियाबान आजकल

 

कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003

 

फ़ैज़ान –कृपा ,उपकार
इमकान–संभावना ,आसर
निगहबान–देखभाल करने वाला ,रक्षक
आफत–मुसीबत
पशेमान–पछतावा

यह भी पढ़ें:-

स्वीकार नहीं | Sweekar Nahin

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *