हाड़ कपावै थर थर ठण्डी | Thandi
हाड़ कपावै थर थर ठण्डी
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी
वजह ( Wajah ) बेवजह परेशान हो रहे खूब बढ़ गई महंगाई। इसी वजह से घूस बढ़ रही बढ़ रही है तन्हाई। मजदूरी की रेट बढ़ गई झूठा रोना रोते क्यों। कहो वजह सड़कों पे जा धरनो में सोते क्यों। हर चीजों के दाम बढ़े तो वेतन बढ़ा हुआ पाया। आमदनी अनुकूल…
इतना भी मत शोर मचाओ ( Itna bhi mat shor machao ) इतना भी मत शोर मचाओ, शहरों में। सच दब कर रह जाये न यूँ, कहरों में।। ये बातें ईमान धरम की होती हैं, वरना चोरी हो जाती है, पहरों में।। गर आवाज न सुन पाओगे तुम दिल की, समझो तुम…
कह देना चाहिए ( Kah dena chahiye ) जीवन में कह देना चाहिए हां बहुत प्यार करते हैं हम बच्चों को बहुत डांटते गुस्सा तो कभी चिल्लाते हैं हर काम पर उनके हम सदा कमियां निकालते हैं पर वह कब बड़े हो जाते हैं वह बिगड़ ना जाए इसलिए हम प्यार का इजहार करने…
नफरत की दुनिया ( Nafrat ki duniya ) कितनी अजीब है यह कितनी लगे बेगानी नफरत की यह दुनिया ये कैसी है कहानी झूठ कपट भरा पड़ा इस मतलबी संसार में नफरतों का जहर घुला लोगों के व्यवहार में तीर सरीखे बोल कड़वे शक की सुई घूमती वहम की कोई दवा नहीं…
आवारा धूप ( Awara dhoop ) धूप तो धूप ही होती है इस कोहरे ठंड से ठिठुरते शहर में धूप का इंतजार रहता है सबको कहीं से थोड़ी सी धूप मिले, सूरज सो गया है कंबल में लिपटकर, धूप को सुला लेता है, आगोश में अपनी , धूप सो जाती है, सूरज की बाँहो…
प्रथम पूज्य आराध्य गजानन ( Pratham pujy aradhy gajanan ) आओ मिल करते अभिनंदन। देव अग्रज गणपति को वंदन।। ज्ञान के दाता बुद्धि विधाता, चौड़ा मस्तक हमें सिखाता, दर्शन दो प्रभु द्वार खड़े हैं, पार्वती शिव के हो नंदन। देव अग्रज गणपति को वंदन।। गज सा बदन लिए हो भारी। मूषक पर…