तुम्हारी बात का | Tumhari Baat Ka
तुम्हारी बात का
( Tumhari Baat Ka )
तुम्हारी बात का जिस पर नशा है ।
उठाने को तेरा घूंघट खड़ा है ।।१
नज़र भर देख भी ले जो तुम्हें अब ।
कहाँ फिर होश में रहता खड़ा है ।।२
तुम्हें जो छू रही है बे-इजाजत ।
वही मगरूर अब देखो हवा है ।।३
किसी के जो बुलाने से न आता ।
वही चंदा तुम्हें अब देखता है ।।४
कभी उसको गले से भी लगा ले ।
तुम्हारे प्यार में जो बावला है ।।५
इबादत में उसी की आज बैठा ।
जिसे हमने यहाँ माना खुदा है ।।६
बहुत बिंदास हो कर के चले थे ।
कि उसकी जुल्फ़ का साया घना है ।।७
वही है रूप की रानी जहाँ में ।
हमारा दिल सुनो जिस पर फ़िदा है ।। ८
उसी की ही अदाओं का असर ये ।
प्रखर जो आज दीवाना हुआ है ।।९
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )
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