स्पृहा नीरव पथ पर, नेह अमिय स्पंदन

स्पृहा नीरव पथ पर,नेह अमिय स्पंदन

 

उर तरंग नवल आभा,
प्रसून सदृश मुस्कान ।
परम स्पर्शन दिव्यता,
यथार्थ अनूप पहचान ।
मोहक स्वर अभिव्यंजना,
परिवेश सुरभि सम चंदन ।
स्पृहा नीरव पथ पर,नेह अमिय स्पंदन ।।

अनुभूति सह अभिव्यक्ति ,
मिलन अहम अभिलाषा ।
कृत्रिमता विलोपन पथ,
प्रस्फुटित नैसर्गिक भाषा।
अंतर्नाद मंगल मधुर,
नैतिकता व्यवहार मंडन ।
स्पृहा नीरव पथ पर,नेह अमिय स्पंदन ।।

हर पल हर आहट पर,
भव्यता अथाह अवतरण ।
कल्पना मूर्त रूप अल्पना ,
आनंद असीम परिसंचरण ।
मुखमंडल अति ओज प्रभा,
पुनीत दर्शन अनंत वंदन ।
स्पृहा नीरव पथ पर,नेह अमिय स्पंदन ।।

सुबह शाम निशि दिन,
हिय वसित एक ही रूप।
धूप छांव बिंब परिलक्षित,
अनुपम मोहिनी प्रतिरूप ।
अभिस्वीकृति प्रस्ताव संकेतन,
प्रेम अनुबंध आदर अभिनंदन ।
स्पृहा नीरव पथ पर,नेह अमिय स्पंदन ।।

महेन्द्र कुमार

नवलगढ़ (राजस्थान)

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