उठो पार्थ

उठो पार्थ | Geeta Saar Kavita

उठो पार्थ

( Utho parth : Geeta Saar )

उठो पार्थ अब बाण उठाओ,पापी का संघार करो।
धर्म धार कर कुन्ती नन्दन, पुनः धर्म आधार धरो।

 

चढा प्रत्यचा गाण्डीव पे तुम,रक्त बीज निसताप करो,
मोह त्याग कर शस्त्र उठाओ,भारत का संताप हरो।

 

याद करो तुम द्रुपद सुता के,खुले केश अंगार नयन।
वस्त्रहरण का करूण दृश्य,दुर्योधन का वो ललुप वचन।

 

याद करो अटहास कर्ण का,शकुनी का छलपूर्ण कथन।
जांघ ठोकता दुर्योधन और, मौन धरा कुरू राज भवन।

 

याद करो हे मध्यपाण्डव,लाक्ष्यागृह की अग्नि शिखा।
वन वन भटक रही कुंती का, त्याग रोष संताप निशा।

 

याद करो हे श्वेतवहन, दुःशासन का वो चीर हरण।
याद करो हे गुडाकेश तुम,छल प्रपंच का सुप्त दीया।

 

जब जब धर्म का क्षरण हुआ तब,पाप मिटा है भारत से।
चयन हुआ है सुनो कौन्तेय, आज तुम्हारा इस युग में।

 

क्यो  भयभीत  हुआ भीभस्तु, नर तू तो नारायण मै।
सृष्टि चक्र का जान धनंजय, मूढ बना क्यो फिरता है।

 

मै ही तुममें तुम ही हूँ मै, सकल चराचर इस जग का।
मुझे मार सकता ना कोई, दिव्य पुँज मै इस सृष्टि का।

 

बार  बार  जन्मे  है  मानव, देह  त्याग  ली पुर्नजन्म।
देख परन्तप पुनः मुझे तुम, मोह त्याग कर जिष्णु सा।

 

चन्द्रवंश के लाज तुम्ही हो,किरीटिन धारी हे अर्जुन।
मोह त्याग हुंकार भरो हे, कपिध्वज गाण्डीवधन्वन।

 

गीता  का  भी ज्ञान यही है, सुनो सनातन हे हिन्दू।
धर्म धार कर शस्त्र उठाओ, शेर दवानल बन सिन्धु।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

          शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

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