ये चक्कर नया-नया है | Amit Ahad Ki Shayari
ये चक्कर नया-नया है
( Ye chakkar naya-naya hai )
दुनिया की सैर का ये चक्कर नया-नया है
जिस ओर देखता हूँ मंज़र नया-नया है
बिल्कुल अलग जहां से हालत है मेरे दिल की
अन्दर से ये पुराना बाहर नया- नया है
बेचैन इसलिए हूँ मख़मल की सेज पर मैं
मेरे लिये अभी ये बिस्तर नया-नया है
लगने लगी जहां की हर चीज़ रायगां अब
बदलाव सा ये मेरे अन्दर नया-नया है
बेहतर बता सकेगा वो घर की अहमियत को
जग में हुआ अभी जो बेघर नया-नया है
ख़ुद पर ग़रूर तुमको ,शायद है इसलिए ही
ये हाथ में तुम्हारे ख़ंजर नया-नया है
उम्मीद तुम वफ़ा की उससे करो न हरगिज़
हर रोज साथ जिसके दिलबर नया-नया है
तन्क़ीद कर रहा जो हर एक की ग़ज़ल पर
इस बज़्म में अभी वो शायर नया-नया है
मेरे जुनून से वो वाक़िफ़ नहीं है शायद
जो मेरे रास्ते का पत्थर नया- नया है
धरती के साथ उसने रिश्ते भुला दिये सब
वो शख़्स जिसके सर पर अम्बर नया-नया है
भाते नहीं है इसको ये बूढ़ी सोच वाले
जो साथ है “अहद “के लश्कर नया-नया है !