जिंदगी रोज़ ग़म ने ही सतायी ख़ूब है | Ghazal
जिंदगी रोज़ ग़म ने ही सतायी ख़ूब है
( Zindagi roz gham ne hi satayi khoob hai )
जिंदगी रोज़ ग़म ने ही सतायी ख़ूब है!
हाँ ख़ुशी के ही लिये बस आँखें रोयी ख़ूब है
प्यार के पत्थर मारे है नफ़रत वालों पे मैंनें
नफ़रतों की आज दीवारें गिरायी ख़ूब है
तोड़कर रिश्ता वफ़ा से ही भरा उसनें मुझसे
की निगाहें आज उसनें ही रुलायी ख़ूब है
यार मेरा वो मुद्दतों बाद मुझसे है मिला
बात दिल की आज उसकी ही सुनायी ख़ूब है
आया वो लेकिन नहीं घर आज भी मिलनें मुझे
आज राहें फ़ूलों से मैंनें सजायी ख़ूब है
कर गया वो आज मुझसे ही वफ़ाओ में दग़ा
दोस्ती जिससे यहां “आज़म” निभायी ख़ूब है