ज़िन्दगी से हमें और क्या चाहिए
ज़िन्दगी से हमें और क्या चाहिए
ज़िन्दगी से हमें और क्या चाहिए ।
आपका बस हमें आसरा चाहिए ।।
हार कर भी हमें सोचना चाहिए ।
उसकी वाजिब सबब ढूँढ़ना चाहिए ।।
जाँ रहा हूँ मिलूँगा तुझे भी सनम ।
देखना पर तुम्हें रास्ता चाहिए ।।
दो विदाई मुझे आज मुस्कान से ।
फिर मिलूँ मैं तुम्हें तो दुआ चाहिए ।।
फूल से ही सभी दिल लगाते रहे ।
खार को भी यहाँ आसरा चाहिए ।।
प्रेम दिल में रहे इस वतन के लिए ।
और क्या फिर हमें देखना चाहिए ।।
पूछता हूँ यहाँ आज उनसे यही ।
क्यों लहूँ से धरा सींचना चाहिए ।।
जीस्त हमको मिला है वतन के लिए
यार मुझको नही दिल रुबा चाहिए ।।
बात अपनी करो तुम प्रखर अब यहाँ ।
हर किसी से तुम्हें तो वफा चाहिए ।।

( बाराबंकी )
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