Zulm ki inteha

जुल्म की इंतेहा | Zulm ki inteha | Chhand

जुल्म की इंतेहा

( Zulm ki inteha )

 

मनहरण घनाक्षरी

 

जुल्मों सितम ढहाए,
नयनों में नीर लाए।
बेदर्दी लोग जुलमी,
दिल को जला गए।

 

पत्थर दिल वो सारे,
जिनके नखरे न्यारे।
अपना बनाके हमें,
आंसू वो रुला गए।

 

जुल्म की इंतेहा हुई,
कहर मत ढहाओ।
इंसान हो इंसान से,
दूरियां वो बना गये।

 

दिल ना दुखाना कभी,
मजबूरी का मारा हो।
जीवन सफल होगा,
काम भला आ गए।

?

कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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