मन के मीत | Man ke meet kavita
मन के मीत
( Man ke meet )
मेरे मन के मीत
मेरे मन की थी कल्पना
कोई भोली भाली अल्पना
आती है मुझे बार बार सपना
बाहों में भरकर उसको अपना बना लेते हो
मेरे मन के मीत
मुझे तुम बहुत याद आते हो
सपनों में क्यूँ सताया करते हो
रोज रोज मिलने का वादा करते हो
अपना वादा रोज तोड़कर मुझे रुलाते हो
मेरे मन के मीत
जब तुमसे मेरा नेह हुआ है
मन मेरे वश में नहीं तेरा हो गया है
तुम बिन मेरी कोई खुशियां नहीं है
याद आते ही मेरे आंखों में भर जाते हो