Mrityu bhoj par kavita

मृत्यु का भोज | Mrityu bhoj par kavita

मृत्यु का भोज

( Mrityu ka bhoj ) 

 

मानों बात आज नव युवक लोग,

बन्द कर दो यह मृत्यु का भोज।

चला रहें है इसको ये पुराने लोग,

आज तुम सभी पढ़े-लिखे लोग।।

 

जीवित पिता  को एक रोटी नही,

मृत्यु पर जिमाते आप लोग कई।

अपना समय तुम सभी भूल गये,

खिलाते थें तुमको बना मालपुये।।

 

आज का समय यह है कुछ और,

कल का था वो समय कुछ और।

पहले थी इन खेतों में ढ़ेर कमाई,

आज खेत में कोई न करें बुआई।।

 

कल थें सभी यहां संगठित लोग,

आज अकेले रहना चाहे ये लोग।

मत करो कर्जा तुम लेकर उधार,

चुका न पाया कोई वापस उधार।।

 

बंद कर दो आज ये फालतु ख़र्च,

पढ़ाई में लगादो हजारों भी ख़र्च।

यही रखो सभी एक दृढ़ संकल्प,

पढ़ें लिखें बच्चें चाहें आए संकट।।

 

शादी-सगाई चाहें हो कोई उत्सव,

कम करों ख़र्च दिखावें के उत्सव।

ये एक बात तुम सबको है कहना,

मानों बात आज भाइयों व बहना।।

 

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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One Comment

  1. आदरणीय सादर वन्दे 🇮🇳
    ‌‌‌‌ हमारी रचनाओ को निरन्तर द साहित्य में स्थान देने के लिए सम्पादन टीम का हृदयतल से बहुत-बहुत आभार व्यक्त करते है। हमारी शुभकामनाएं है कि ‘द साहित्य’ दिनों-दिन इसी तरह साहित्य में आगे बढ़ता रहें बुलंदियां छूता रहें और हम रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित कर हमारा हौसला बढ़ाता रहें जिससे हम रचनाकार और बेहतर रचनाएं लिखकर आपकों दे सके। जय हिन्द जय भारत
    सैनिक की कलम
    गणपत लाल उदय अजमेर (सीआरपीएफ)
    गांव-अरांई अजमेर राजस्थान (भारत)

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