Ghazal | दर्द की व्यथा
दर्द की व्यथा
दर्द इस कदर, बेहाल था,
थी उम्मीद सहारा दोस्त हैं,
कुछ मायूस कर चले,
कुछ को थी खबर ,
उंगलियां फोन तक न चले,
कुछ तो थे साथ मरहम ले चले
कभी जिनका थे सहारा,
आज वही बेसहारा कर चले,
दर्द इस कदर बेहाल था
कुछ अपने परिजन घरों में चला,
देख इस हालत में वो दरवाजे बंद कर चले,
दर्द था मुझे ,आंसू माता-पिता के गिर चले,
मां के थे ममता के शब्द,
ऐ भगवान्
मेरे बेटे को कर दो ठीक
बदले इसके दर्द मुझको दे भले ,
दर्द इस कदर बेहाल था,
देख इस हालत में
कुछ थे अपने , पराए हो चले,
कुछ मिले फरिश्ते ऐसे,
जो पराए थे ,अपने हो चले ,
अब ये फरिश्ते मेरे दर्द का मरहम हो चले,
रह गई कुछ तमन्ना अब रब से मेरी,
फरिश्तों की फर्ज की कर्ज अदा कैसे करूं,
ए मौला दे मौका,
हर किसी के कर्ज का फर्ज अदा कर सकूं।
?
लेखक– धीरेंद्र सिंह नागा
ग्राम -जवई,
पोस्ट-तिल्हापुर,
जिला- कौशांबी, उत्तर प्रदेश
Pin-212218