प्यार की लक्ष्मण रेखा | Poem pyar ki lakshman rekha
प्यार की लक्ष्मण रेखा
( Pyar ki lakshman rekha)
तपती ज्वालाओं के दिन हों या ऋतु राज महीना।
मेरे प्यार की लक्ष्मण रेखा पार कभी मत करना।
नभ समक्ष हो या भूतल हो,
तुम मेरा विश्वास अटल हो,
रहे पल्लवित प्रेमवृक्ष यह चाहे पड़े विष पीना।।मेरे..
जब जब फूल लगेंगें खिलने,
अंगारे आयेंगे मिलने,
तिमिर फंद को काट उजाला सूरज सा तुम करना।।मेरे..
क्या खोना क्या पाना मग में
तुमसा दुर्लभ होना जग में,
मेरे हृदयदेश के वन में हिरण बन के विचरना।।मेरे..
श्रृष्टि में संसार बहुत है,
लेकिन तुमसे प्यार बहुत है,
जीवन के झंझावातों में दीपशिखा सी जलना।।मेरे..
पत्थर कब होते श्रृंगारी,
प्रेमरतन धन सबपे भारी,
मलय समीर अशेष सुरा सी धारा बनकर बहना।।मेरे.
लेखिका : दीपशिखा
शिक्षिका, प्रा०वि०-महोली-2,
सीतापुर (उत्तर प्रदेश)