गुलज़ार हो तुम | Gulzar ho tum
गुलज़ार हो तुम
( Gulzar ho tum )
हजारों ख्वाहिशें दबी दिल में, कहीं ये दम यूं ही न निकल जाए,
इंतज़ार ए उम्मीद में कहीं, आरजूओं का मौसम न बदल जाए।
रगों में खौलता ये लहू कहीं, बेसबर आंखों से न बह जाए ,
संभाल आंगन ये तेरे सपनों का, कहीं सपनों में ही न बिखर जाए।
जिस्म-ओ-जां यूं बेजुबां बनकर, बंद घर में न ख़ाक हो जाए,
बनके खुदगर्ज करले गुस्ताखी, तेरी चुप्पी न गुस्ताख़ हो जाए।
समेट ले ये उधड़ती जिंदगानी, दे के दस्तक फरार न हो जाए,
ख़्वाब छत पे जो टहलते है अक्सर, पंछी उड़ जाए दरार न रह जाए।
हो जा गुलज़ार भूल बेजार सा मन, के कभी तुझे तोला न परखा जाए ,
जुनून हो जीतने का अगर, हार को भी फिर छुपा के रखा न जाए।
खुद को पाने की जिद हो मुकद्दर से, तेरी किस्मत को अब न टटोला जाए,
पहाड़ जैसे इरादे रख के निकल, सूरज हैं तू तुझे शब-ए-चांद न बोला जाए।