होली प्रेम | Holi Prem
होली प्रेम
( Holi Prem )
महक उठा फिर से टेशू,
फूलों से अपने प्रिय लाल !
फागुन में उड़ने लगा फिर
प्रेम से बने रंग का गुलाल ।।
जब पिचकारी मोहे पिया ने मारी
रंग डारी मोहे सभी रंगों से सारी,
रगड़ रगड़ मोहे ऐसे रंग लगाया
निकल गई थकन,सारी बीमारी ।।
मचाया हुड़दंग होली में जितना
भंग का रंग भी चढ़ गया उतना
उलटा सीधा कुछ नजर न आएं,
भर भर एक दूजे को रंग लगाएं।।
आए आनंद होली में बड़ा भारी,
बचपन की सब जब याद दिलाए
आज छुट्टी है इस बुढ़ापे की भी
मन से सब बच्चे फिर बन जाए ।।
पानी , कीचड़ , धूल की होली,
लठमार देखो खेले सब होली,
फूलों से होली की जब बारी आई
बरसाने की भी स्मृति तब आई ।।
राधे कृष्ण के चरणों में रख गुलाल
होली पर रंगो की महफिल सजाई,
गुजिया लड्डू भर भर बाटे खाएं!
होली पर शत्रु भी मित्र हो जाए भाई।।
आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश