बड़े ख्वाब | Bade Khwaab
बड़े ख्वाब
( Bade Khwaab )
अक्सर मैंने बड़े ही
ख्वाब देखे हैं,
परन्तु ,
बहुत से गुमनाम
देखे है,
ये भी देखा है,
कि कहाँ ईश्वर है,
कहाँ फ़कीर खाली है,
मैंने उन पदचिन्हों के
भी निशान देखे है।
किस तरफ रूख करूँ अपना,
चलने से पहले सैकड़ों सवाल
देखे है।
जवाब कहाँ से पाती,
कहीं कोई निशान नही उनका,
ये समझ आ गया
जिम्मेदारियों तले
सभी ख्वाब टूटते भी देखे है,
सच है—
कुछ ख्वाब – ख्वाब ही
रह जाते है,
और हम फिर
इस मुफलिसी दुनियां
में सिमटकर
रह जाते है।।
डॉ पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
लेखिका एवं कवयित्री
बैतूल ( मप्र )
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