Ghazal | कहां मुश्किल अगर वो साथ में करतार आ जाए
कहां मुश्किल अगर वो साथ में करतार आ जाए
( Kahan Mushkil Agar Wo Sath Mein Kartar Aa Jaye )
कहां मुश्किल अगर वो साथ में करतार आ जाए।
लगे कश्ती किनारे हाथ ग़र पतवार आ जाए।।
निभाना होता है मुश्किल ये जीवन साथ में यारो।
दिलों के बीच में जब भी कोई दीवार आ जाए।।
नहीं फिर दूरियां रहती समझते हो अगर अपना।
मिटा के नफ़रतों को ग़र निभाना प्यार आ जाए।।
मिले ग़र प्यार हमको भी कभी खुदग़र्ज दुनिया में।
रूकी-सी ज़िन्दगी में भी तनिक रफ्तार आ जाए।।
नयापन जोश से भरता भरे जज़्बा बुझे दिल में।
कहानी में ज़रूरी है नया किरदार आ जाए।।
गुनाहों से बचोगे तब चलोगे राह नेकी की।
ख़ुदा के सामने करना अगर इक़रार आ जाए।।
गुलों को मत भुला देना डगर के पार खिलते जो।
कभी राहे-चमन में भूले से ग़र ख़ार आ जाए।।
वज़न आता ग़ज़ल में शायरी पे नूर आता है।
जिग़र पे चोट करते चंद ग़र अशआर आ जाए।।