कान्हा चले आएंगे | Chhand
कान्हा चले आएंगे
( Kanha chale aayenge )
( मनहरण घनाक्षरी छंद )
मन में विश्वास रखो
हृदय में आस रखो
जगत के स्वामी खुद
दौड़े चले आएंगे
मोहन मुरली धारी
सुदर्शन चक्र धारी
विपदा हरने प्रभु
लीलायें रचाएंगे
मुरली की तान प्यारी
ध्यान धरे नर नारी
सुखचैन सुखदाता
खुशियां लुटाएंगे
विपदा हरेंगे सारी
गिरधर बनवारी
घट घट वासी नैया
खेवन को आयेंगे
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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