यह आंखें | Aankhen Poem in Hindi
यह आंखें
( Yah Aankhen )
यें ऑंखें कुछ-कुछ कहती है,
लगता है जैसे मुॅंह बोलती है।
अचूक निशाना साधे रहती है,
ऐसे लगता है जैसे बुलाती है।।
यें शर्माती है और घबराती है,
दीवानी मद-होश कातिल है।
फिर भी सबको यह प्यारी है,
यही काली ऑंखें निराली है।।
चाहें तुम्हारी है चाहें हमारी है,
लेकिन दुनियां यें दिखाती है।
क्या गलत एवम क्या सही है,
ऑंखें सब-कुछ समझती है।।
रोज़ नए-नए नज़ारे देखती है,
एवम पलकों में छुपा लेती है।
चाहें नीली है चाहें भूरी यह है,
यें ड्रोन जैसे कैच कर लेंती है।।
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