आज़म नैय्यर की ग़ज़लें | Aazam Nayyar Poetry

क्या लिखूं मैं शाइरी में

क्या लिखूं मैं शाइरी में
दर्द आंसू ज़िंदगी में

वो नज़र आया नहीं है
खूब ढूँढ़ा हर गली में

भूल जा तू याद उसकी
रख नहीं आँखें नमी में

इस कदर बेरोज़गारी
ज़ीस्त गुज़रे मुफलिसी में

हाथ उससे तू मिला मत
है दग़ा उस दोस्ती में

दोस्त आज़म का ज़रा बन
कुछ न रक्खा दुश्मनी में

कट रहा है गम भरा जीवन बहुत

मुंतज़िर रहता खुशी को मन बहुत
कट रहा है गम भरा जीवन बहुत

प्यार की खुशबू से मैं वीरान हूँ
है कहीं उल्फ़त भरा गुलशन बहुत

एक मैं हूँ प्यार से भीगा नहीं
प्यार का बरसा कहीं सावन बहुत

जिंदगी में भेज दे कोई हसीं
जिंदगी में रब अकेलापन बहुत

फ़ूल जब से प्यार का उसको दिया
बन गये है जान के दुश्मन बहुत

जुल्म अपनों के सहे इतने मगर
दुख भरा मेरा कटा बचपन बहुत

छोड़ जब आज़म दिया इस्कूल है
रोज़ घर में ही हुई अनबन बहुत

ग़म भरी कभी मेरी जिंदगी नहीं होती

ग़म भरी कभी मेरी जिंदगी नहीं होती
हर ख़ुशी जुदा मुझसे कभी नहीं होती

दिल भरा नहीं रहता हर घड़ी उदासी से
बेवफ़ा उसी की जो आशिक़ी नहीं होती

ज़ीस्त में नहीं होता आज कल अकेलापन
ग़ैर गर वहीं मुझसे दोस्ती नहीं होती

वो निकाह से ही इंकार जो नहीं करता
फ़िर निगाह अश्कों से भरी नहीं होती

आज ईद मिलकर ही प्यार से मनाते हम
साथ गर उसी के जो दुश्मनी नहीं होती

सिलसिले जुदाई के फ़िर नहीं कभी होते
तल्ख़ गुफ्तगू उसने जो करी नहीं होती

आरजू नहीं होती हर घड़ी मुझे उसकी
गर मुझे वहीं आज़म जो मिली नहीं होती

ज़ीस्त में क्यों ख़ुशी नहीं आती

ज़ीस्त में क्यों ख़ुशी नहीं आती
प्यारी सी दोस्ती नहीं आती

प्यार से पेश आता हूँ सबसे
यूं मुझे बेरुख़ी नहीं आती

हूँ तलबगार दोस्ती का मैं
करनी ही दुश्मनी नहीं आती

ज़ीस्त में नफ़रत के अंधेरे है
प्यार की रोशनी नहीं आती

जो कहा सच कहा सनम तुझसे
हाँ करनी मस्ख़री नहीं आती

मैं दुआ रोज़ रब से करता हूँ
क्यों गमों की कमी नहीं आती

कुछ तस्सली मिले यहाँ आज़म
उसकी ही आगही नहीं आती

उसे ही याद

बहुत दिल पे यहीं पहरा रहा है
उसे ही याद दिल करता रहा है

हक़ीक़त में नहीं मुझसे मिला जो
वहीं बस ख़्वाब में आता रहा है

मुहब्बत का नज़र आये न रस्ता
अदावत का धुआँ उठता रहा है

जिसे बेताब आँखें देखने को
उसी की शक्ल पे पर्दा रहा है

करी उम्मीद थी हर पल ख़ुशी की
यहाँ तो रोज़ ग़म मिलता रहा है

तम्मना बन गया दिल की वहीं अब
पराया जो यहाँ चेहरा रहा है

उसे दूँ फूल आज़म किस तरह अब
कि अब रिश्ता नहीं गहरा रहा है

गुल जिसकी ही सूरत है

गुल जिसकी ही सूरत है
उससे मुझको उल्फ़त है

चैन मिले देखकर उसको
वो दिल की ही राहत है

और नहीं कोई भाता
उसकी ही अब आदत है

वो आता न नज़र मुझको
यार लगी जिसकी लत है

लौटा अंगूठी वो गया कल
कि हुई जिससे निस्बत है

वो मिलता नहीं है आज़म
जिसकी दिल को रग़बत है

रोज़ जिसकी जुस्तजू है

रोज़ जिसकी जुस्तजू है
वो नहीं अब रू ब रू है

चाहता हूँ भूल जाऊं
याद आये रोज़ तू है

छोड़ दे नाराज़गी सब
प्यार की कर गुफ्तगू है

प्यार का भेजा उसे ख़त
चाँद सी जो हू ब हू है

तू ज़रा चलना संभल ले
हर तरफ़ देखो अदू है

हो सकी आज़म न पूरी
हाँ रही जो आरजू है

है ज़रूरत उस सदा की

एक सच्चा आशना की
है ज़रूरत उस सदा की

भूल जा दिल से उसे तू
आस मत रख बेवफ़ा की

कब निभायी है मुहब्बत
प्यार में उसने जफ़ा की

प्यार से जो देखता था
अब नज़र उसने ख़फ़ा की

टूटे दिल को चैन आये
रोज़ रब से ही दुआ की

वो गया आज़म दग़ा दे
खूब जिससे ही वफ़ा की

प्यार की गुफ्तगू नहीं करती

प्यार की गुफ्तगू नहीं करती
शक्ल वो रू- ब रू -नहीं करती

आज बदनाम हम नहीं होते
बात वो चार सू नहीं करती

दोस्त बनकर मगर सदा रहते
गर वहीं दिल अदू नहीं करती

हो गयी किसलिए ख़फ़ा मुझसे
क्यों सनम बात तू नहीं करती

अजनबी मान लेता मैं आज़म
बात वो गर शुरू नहीं करती

रोज़ जिसकी जुस्तजू है

रोज़ जिसकी जुस्तजू है
वो नहीं अब रू ब रू है

चाहता हूँ भूल जाऊं
याद आये रोज़ तू है

छोड़ दे नाराज़गी सब
प्यार की कर गुफ्तगू है

प्यार का भेजा उसे ख़त
चाँद सी जो हू ब हू है

तू ज़रा चलना संभल ले
हर तरफ़ देखो अदू है

हो सकी आज़म न पूरी
हाँ रही जो आरजू है

क्या लिखूं मैं शाइरी में

क्या लिखूं मैं शाइरी में
दर्द आंसू ज़िंदगी में

वो नज़र आया नहीं है
खूब ढूँढ़ा हर गली में

भूल जा तू याद उसकी
रख नहीं आँखें नमी में

इस कदर बेरोज़गारी
ज़ीस्त गुज़रे मुफलिसी में

हाथ उससे तू मिला मत
है दग़ा उस दोस्ती में

दोस्त आज़म का ज़रा बन
कुछ न रक्खा दुश्मनी में

दिल अपना तो

याद बहुत आता वो अक्सर है ?
आँखें आंसूओं से यूं तर है

जब से छोड़ गया है साथ वहीं
खाली लगता अब तो ये घर है

उल्फ़त के दिन खोये है ऐसे
नफ़रत का हर पल अब मंजर है

क्या लेना नफ़रत की बातों से
दिल अपना तो यारों शायर है

दोस्त जिसे दिल से सच्चा माना
मारा नफ़रत का ही खंज़र है

गुल लेगा क्या वो ही उल्फ़त का
उल्फ़त से दिल उसका बंजर है

किससे आज़म बात करूं दिल की
कोई न यहाँ तो अपना पर है

है प्यार ही वतन में

है प्यार ही वतन में
गुल खिल रहे चमन में

ऊंचा रहे तिरंगा
हर व़क्त इस गगन में

रखना ख़ुदा मुहब्बत
तू देश की फ़बन में

कोई न आंच आये
हो मुल्क बस अमन में

सुन के अदू डरे जो
जय हिंद हो हर झन में

दुश्मन वतन के मारूं
आज़म ये ही ज़हन में

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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