Astitva ki Talash

अस्तित्व की तलाश | Astitva ki Talash

अस्तित्व की तलाश

( Astitva ki Talash )

 

पुरुष प्रधान समाज में अटक रही है नारी,
जमीन आसमां के बीच लटक रही है नारी !

सब कुछ होकर भी कुछ पास नहीं उसके,
अस्तित्व की तलाश में भटक रही है नारी !

बंदिशों के जाल में फँसी मछली की तरह,
खुद से लड़ती किस्मत पटक रही है नारी !

जीने की चाह लिए मन ही मन खुश होती,
अपने में मस्त होकर मटक रही है नारी !

रास नहीं आता किसी को आगे बढ़ जाना,
हर इंसान की नज़र में खटक रही है नारी !!

DK Nivatiya

डी के निवातिया

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