Kahan Hoti
Kahan Hoti

कहां होती

( Kahan Hoti )

 

रवैये में लचक कोई मुरव्वत ही कहां होती
कभी सरकार की हम पर इनायत ही कहां होती।

जो बातिन है वो ज़ाहिर हो ही जाया करता है इक दिन
असलियत को छुपाने की ज़रूरत ही कहां होती।

मेरी तकलीफ़ में जगती है वो शब भर दुआ करती
हो मेरा काम तो मां को हरारत ही कहां होती।

अना को दरगुज़र कर फ़त्ह हासिल कर लिया उन पर
मुहब्बत में तकब्बुर की इजाज़त ही कहां होती।

ये जो शह्रे मुहब्बत हुस्न के पैकर जहां रहते
भला इसमें वफाओं की रिवायत ही कहां होती।

गया परदेस रोटी के लिए सब शोखियां भूला
करे ग़र बात लहज़े में शरारत ही कहां होती।

वो हरजाई नयन सबको रुला खुश-बाश रहता है
उसे दिल तोड़ कर कोई नदामत ही कहां होती।

सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया  ( उत्तर प्रदेश )

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