“कुर्बानियां आंदोलन के चक्रव्यूह में मिली हमें आजादी थी”
“कुर्बानियां आंदोलन के चक्रव्यूह में मिली हमें आजादी थी”
क्रांतिकारियों के हृदय में भड़की आजादी की चिंगारी थी।
गुलामी के प्रांगण में,
रची आजादी की कहानी थी।
वह तो स्वतंत्रता सेनानी की कुर्बानी थी।
वह तो स्वतंत्रता सेनानी की कुर्बानी थी।
लाल कुर्ती में बजाया आजादी का था बिगुल।
छेड़ कर महासंग्राम चटाई अंग्रेजों को धूल
वह तो मस्त मौला मातृभूमि के दीवाने थे।
खेल गए खून की होली वह तो मस्ताने थे।
जलिया वाले बाग में खून की होली थी।
कर बहिष्कार कपड़ों का मनाई उन्होंने दिवाली थी।
गुलामी के प्रांगण में रची आजादी की कहानी थी ।
वह तो स्वतंत्रता सेनानी की कुर्बानी थी।
अंग्रेजों के चुंगल से आजादी पानी थी।
मच गई अंग्रेजों में हलचल, उनको भगाने की ठानी थी।
क्रांतिकारियों के रगो में दौड़ रही आजादी की रवानी थी।
मातृभूमि की सेवा में मर मिटने की उन्होंने ठानी थी।
गुलामी के प्रांगण में रची आजादी की कहानी थी।
वह तो स्वतंत्रता सेनानी की कुर्बानी थी।
वह तो स्वतंत्रता सेनानी की कुर्बानी थी।
जंग ए आज़ादी के महासंग्राम में फूटने लगी विद्रोह की चिंगारी थी।
सत्याग्रह आंदोलन में कूद पड़ी स्वतंत्रता सेनानी थी।
भारत छोड़ो आंदोलन में अंग्रेजी हुकूमत की नीव हिलाई थी।
बैठकर सिंगापुर में आजाद हिंद फौज बनाई थी।
रावी तट पर बैठकर पूर्ण स्वराज्य की योजना बनाई थी।
सामूहिक रूप में ब्रिटिश की कमर हिलाई थी
खौल रहा था खून उन नौजवानों का अंग्रेजों ने जब लगाई फांसी थी।
इतिहास के पन्नों में छपी चोरा चोरी कांड की कहानी थी।
कई विद्रोह आंदोलन फांसी महासंग्राम के बाद मिली आजादी थी।
गुलामी के प्रांगण में रची आजादी की कहानी थी।
वह तो स्वतंत्र सेनानी की कुर्बानी थी।
वह तो स्वतंत्र सेनानी की कुर्बानी थी।
15अगस्त 1947 में,
इतिहास के पन्नों में लिखी आजादी की कहानी थी।
लेखिका :-गीता पति ( प्रिया) उत्तराखंड