बहुत सुन चुके

बहुत सुन चुके

बहुत सुन चुके है कि घाटा नहीं है
बहीखाता फिर क्यों दिखाता नहीं है

चलो दूर कुछ और भी तुम हमारे
अभी प्यार का मुझको नश्शा नहीं है

तुम्हारी जुबाँ अब तुम्हें हो मुबारक
कभी थूक कर हमने चाटा नहीं है

न देखो ज़रा तुम मेरी सिम्त मुड़कर
अभी तक ये दिल मेरा टूटा नहीं है

सुलाने पड़े है मुझे भूखे बच्चे
नही कह सका घर में आटा नहीं है

उठाकर नज़र तुम इधर अब न देखो
चुभा पैर में कोई काँटा नहीं है

तुम्हारी वफ़ा ने समेटा मुझे है
तभी हाथ से कुछ भी छूटा नहीं है

उठा जो रहा उँगलियाँ इस तरफ है
हमें भी पता है खुदा वो नहीं है

वफ़ा पे प्रखर की लगाते हो तोहमत
कहा क्या है उसने ये भूला नहीं है

Mahendra Singh Prakhar

महेन्द्र सिंह प्रखर 

( बाराबंकी )

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