विदाई का पल | Beti ki bidai par kavita
विदाई का पल
( Bidai ka pal )
एक एक करके
मेरे आँगन में चहकती महकतीं फुदकती
चिड़िया जा रही है
मुझसे दूर….
नयें आशियानें में
तुम्हें याद है प्रिया बेटा
जब कोचिंग संस्थान में
तुम्हें छोड़ते समय
मैंने देखी थी तुम्हारी
भरी भरी आँखें
और पूछते ही
मेरे सीने से लगकर
तुम रोने लगी थी
और मैं भी खुद को
नहीं सम्भाल पाया था
तेरी आँखों से गिरते
वो मोती जो
मुझसे दूर होने
की प्रतिक्रिया थी
पर आज मेरे घर से
विदा होकर तुम
नयें नीड़ के रूप में
कर रही हो
मेरे ही घर का विस्तार
चलते फिरते हुए
तेरे विवाह की तैयारियों
के बीच ही
दिन में कई बार
भर आती है
आँखों की पुतलियाँ
तेरी विदाई के पल को
याद करके
पर सोखकर
पलकों के समंदर को
रूमाल में
करता हूँ कोशिश
जनक के दायित्वों के
कुछ अंश निभानें की
लगभग हर दिन
तेरा ये कहना कि
पापा !
आप लापरवाह हो
आपके कपड़ों किताबों को
बार बार व्यवस्थित
करना पड़ता है
आपकी दवा और खानें का
ध्यान रखना पड़ता है
पर बेटा
मेरी यह अव्यवस्था
ही शायद तुम्हें
व्यवस्थित होना
सिखा रही थी
ताकि व्यवस्थित कर सको
अपना घर व खुद को
सदा सुखी रहो
मेरी दुआयें सदा
तुम्हारे साथ है।
रचनाकार : शांतिलाल सोनी
ग्राम कोटड़ी सिमारला
तहसील श्रीमाधोपुर
जिला सीकर ( राजस्थान )