Shantilal Soni Poetry
Shantilal Soni Poetry

उधार

( Udhaar ) 

 

सुबह धूप माँगी
दोपहर में छाँव
शाम को कंचन सा व्योम
रात सितारे चाँद चाँदनी
शुद्ध हवा व साँसें
कभी हरियाली
फूलों की डाली
कभी फल मेवा
अनाज की बाली
पीने को पानी
वर्षा इंद्रधनुष चूनर धानी
सब कुछ जीवनभर
उधार ही तो लिया है
फिर बेचा है इन सबको
अर्थ लाभ के लिये
अपने ही लोगों को
पर हे मानव !
प्रकृति का ऋण तो
सदैव तुझ पर
उधार ही रहेगा
जन्मों जन्मों तक
पर प्रकृति की
उदारता भी देख
तेरे शव को भी
दे रही है उधार
एक सफेद चादर
ताकि ढक जाये
तेरे सारे उधार व
काली करतूतें

 

रचनाकार : शांतिलाल सोनी
ग्राम कोटड़ी सिमारला
तहसील श्रीमाधोपुर
जिला सीकर ( राजस्थान )

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