बुरा दौर आने वाला है | Kavita
बुरा दौर आने वाला है
( Bura daur aane wala hai )
झोंपड़ियों में सुलगती इस आग से,
नेताओं का महल रोशन होने वाला है;
लाशों के ढेर पर सियासत है चालू
लगता है कहीं चुनाव होने वाला है !
अगर तुम आज भी ना बोले
तो यह ज़ुल्म यूँ ही बढ़ता जाएगा;
ज़ुल्म करने वाला तानाशाह
ऐसे ही तुम्हारे हक़ छिनता जाएगा ।
बताओ आने वाली नस्लों के लिए
तुम क्या कुछ छोड़ जाओगे ?
उन्हें भी अपनी तरह गुलामी की
बेड़ियों में जकड़ा छोड़ जाओगे ।
अगर सच में ज़िंदा रहना चाहते हो,
तो यूँ डर-डर कर जीना छोड़ दो ;
जो सदा सच और हक़गोई की बात करें
उन इंक़लाबियों से नाता जोड़ लो ।
यह तो कुछ भी नहीं साथियों !
साज़िशों कि बस शुरुआत भर है ;
अभी तो सच का सूरज छिपा ही है
आगे इससे भी अंधेरी काली रात है ।
अब भी समय है- हो जाओ तैयार
तुम्हारे हक़ों पर डाका डालने वाला है;
ज़ुल्मातों की ये हदें तो कुछ भी नहीं
अभी इससे भी बुरा दौर आने वाला है ।
ज़ुल्मातों की ये हदें तो कुछ भी नहीं
अभी इससे भी बुरा दौर आने वाला है ।
कवि : संदीप कटारिया
(करनाल ,हरियाणा)