जिंदगी की पगडंडियों
जिंदगी की पगडंडियों कांटों से भरी, ऊ उबड़ खाबड़ जिंदगी की पगडंडियां कहां तक साथ चलेंगी क्या जानूं। कष्टकर हैं बोझिल सी फिर भी मेरी, जिंदगी में उम्मीद की किरण लातीं , कहीं तो मंजिल मिलेगी मुझे चलते चलते अविराम डगर पर। मै हूं कि कभी कभी निराश हो जाती हूं, थक जाती हूं खुद…