ज़ख़्म हुए नासूर | Zakhm Hue Nasoor

ज़ख़्म हुए नासूर | Zakhm Hue Nasoor

ज़ख़्म हुए नासूर ( zakhm hue nasoor ) बिखरी यादें टूटे सपने, क्या तुमको दे पाऊंगी। ज़ख़्म मेरे नासूर हुए हैं, कैसे ग़ज़ल सुनाऊंगी।। हक था तुम्हारा मेरे यौवन की, खिलती फुलवारी पर। पर तुम माली बन न पाए, मैं पतझड़ बन जाऊंगी।। ज़ख्म मेरे नासूर हुएं हैं कैसे ग़ज़ल सुनाऊंगी। मेरी मुस्काने और खुशियां,…

Jeevan ke rang

जीवन के रंग | Jeevan ke Rang

जीवन के रंग ( Jeevan ke Rang ) जिंदगी ने जिंदगी से कुछ सवाल किये है। जिंदगी ने जिंदगी को उनके जबाव दिये है। कभी खुशी के लिए कभी गम के लिए। फिर भी जिंदगी को संतुष्ट नही कर पाये।। जिंदगी को जग में सब खुशी से जीना चाहता है। फूलों की चाहत को दिलमें…

इंसानियत खो गई

इंसानियत खो गई | Insaniyat Kho Gayi

इंसानियत खो गई ( Insaniyat Kho Gayi ) बिछुड़न की रीति में स्वयं को पहचाना भीडतंत्र में बहुत प्रतिभावान हूँ जाना ।।1। नयन कोर बहते रहे शायद कभी सूखे राधा का चोला उतार पार्वती सरीखे ।।2। तुम गए ठीक से, पर सबकुछ ठीक क्यूँ नहीं गई इरादे वादे सारे तेरे गए पर याद क्यूँ नहीं…

78वाँ स्वतंत्रता दिवस | 78th Independence Day

78वाँ स्वतंत्रता दिवस | 78th Independence Day

78वाँ स्वतंत्रता दिवस ( 78th Independence Day ) आजादी पर्व पर चेतन निज घट में रमना हैं । क्या खोया क्या पाया उसका चिन्तन करना हैं । आजादी पर्व पर चेतन – ।।ध्रुव ॥ हमारा अवचेतन मन है ऐसा संग्राहलय । जिसे कहते है सुचिन्तित विचारों का आलय।। आजादी पर्व पर चेतन – ।।ध्रुव ॥…

डॉ. राही की कविताएं

डॉ. राही की कविताएं | Dr. Rahi Hindi Poetry

हृदि समंदर ! मन के अन्दर ! एक समन्दर ! एक समन्दर ! मन के अन्दर । गहरा – उथला उथला – गहरा तट पे बालू – रेत समन्दर । इच्छाओं की नीलिमा ले मन का है आकाश समन्दर। इसमें सपनों के मोती हैं संघर्षों की प्यास समन्दर। इसके गहरे पानी पैठ अनुभव के हैं…

सांवरे की बंसी

सांवरे की बंसी | Kavita Sanware ki Bansi

सांवरे की बंसी ( Sanware ki Bansi ) सताने लगी है सांवरे की बंसी, रिझाने लगी है सांवरे की बंसी, मुझे रात औ दिन ख्याल है उसका ही, जगाने लगी है सांवरे की बंसी, कभी गीत गाके सुनाए है बंसी, कभी प्रीत मुझसे जताए है बंसी, मुझे आज कल वो लुभाए है इतना, सभी चैन…

Kavita Hey Maa

तुम ही तो माँ | Kavita Tum Hi to Maa

तुम ही तो माँ ( Tum Hi to Maa ) सुबह सवेरे जब तुम मुझे उठाती थी, एक रौशनी सी मेरे आंखों को छू कर जाती थीं। उठ कर, हाथों से जब मैं आंखें मलती थी, ” सुबह हो गई बेटा ” कह कर तुम सीने से मुझे लगाती थी। देख कर तुम्हारी प्यारी सी…

धर्म साधना का महीना

धर्म साधना का महीना | Dharma Sadhana ka Mahina

धर्म साधना का महीना ( Dharma Sadhana ka Mahina ) लगा है सावन का महीना विचारो में आस्था जगी है। धर्म की ज्योति भी देखो दिलों में जल उठी है। तभी तो सावन में देखो मंदिरो में भीड़ लगी है। और प्रभु दर्शन पाने की सभी में होड़ लगी है।। सिर अपना झूका कर प्रभु…

प्रेम का नाता

प्रेम का नाता | Kavita Prem ka Nata

प्रेम का नाता ( Prem ka Nata ) यह कैसा, प्रेम का नाता है? कितनी भी ,अनबन हो चाहे । यह पुनः ,लौट कर आता है। जितना बचना ,चाहें इससे । यह उतना, बढ़ता जाता है। हटाकर घृणा, को यह पुनः। अपना स्थान, बनाता है । सबकी चालों, को सहकर भी। यह हर क्षण ,…

Dr. Satywan  Saurabh

डॉ. सत्यवान सौरभ की कविताएं | Dr. Satywan Saurabh Hindi Poetry

दोहरे सत्य ●●●कहाँ सत्य का पक्ष अब, है कैसा प्रतिपक्ष।जब मतलब हो हाँकता, बनकर ‘सौरभ’ अक्ष॥●●●बदला-बदला वक़्त है, बदले-बदले कथ्य।दूर हुए इंसान से, सत्य भरे सब तथ्य॥●●●क्या पाया, क्या खो दिया, भूल रे सत्यवान।किस्मत के इस केस में, चलते नहीं बयान॥●●●रखना पड़ता है बहुत, सीमित, सधा बयान।लड़ना सत्य ‘सौरभ’ से, समझो मत आसान॥●●●कर दी हमने…