ज़ख़्म हुए नासूर | Zakhm Hue Nasoor
ज़ख़्म हुए नासूर ( zakhm hue nasoor ) बिखरी यादें टूटे सपने, क्या तुमको दे पाऊंगी। ज़ख़्म मेरे नासूर हुए हैं, कैसे ग़ज़ल सुनाऊंगी।। हक था तुम्हारा मेरे यौवन की, खिलती फुलवारी पर। पर तुम माली बन न पाए, मैं पतझड़ बन जाऊंगी।। ज़ख्म मेरे नासूर हुएं हैं कैसे ग़ज़ल सुनाऊंगी। मेरी मुस्काने और खुशियां,…