सीख दे गई

सीख दे गई | Kavita Seekh

सीख दे गई (Seekh De Gayi ) सूखी टहनी उड़ आई मेरे पास थी उसे कुछ कहनी बोली मुझे न काटा कर जरूरत भर मांग लिया कर मैं खुशी खुशी दे दूंगी नहीं हूं बहरी गूंगी सुनती हूं सब कुछ देखती हूं तेरे व्यवहार सहकर तेरे अत्याचार भी कुछ कहती नहीं इसका क्या मतलब दोगे…

चांद पर जमीन

चांद पर जमीन | Hindi Kaita on Nature

चांद पर जमीन ( Chand Par Zameen ) चचा ! बिकने लगा है चांद पर जमीन लोग खरीदने भी लगे हैं। जाकर देखा नहीं वहां, नीचे से तो दिखता है बस आसमां; अखबार में पढ़ा। पढ़ खरीदने का ख्याल मन में आया, चचा के दरबार में भागते चला आया। कुछ मशविरा दीजिए, लीजिए अखबार आप…

कन्या और दान

कन्या और दान | shadi poem in hindi

*कन्या और दान* ( Kanya Or Daan )    जबसे बिटिया हुई सयान चिंता में है बाप की जान  नित्य  धरावे  नारी  ध्यान  जल्दी कर दो कन्यादान  घर -वर ढूढ़े फिर बाप परेशान कहां   मिले   अच्छा  मेहमान घर मिले अच्छा तो वर नहीं अच्छा बर  मिले  अच्छा तो घर नहीं अच्छा घर- वर अच्छा तब…

याद सताए तेरी सोन चिरैया

याद सताए तेरी सोन चिरैया | Kavita

याद सताए तेरी सोन चिरैया ( Yad Sataye Teri Son Chiraiya )   कहां गई? वो सोन चिरैया! रहती थी जो सबके घर आंगन चाहे महल हो या हो मड़ैया! कहां गई?? क्या खो हो गई? या रूठ कर हमसे दूर हो गई? भारत मां की थी तू लाडली, मिलजुलकर सबने जिसे थी पाली। करती…

मन का संसय

मन का संसय | Kavita

मन का संसय ( Man ka Sansay )   उम्मीद हमारी तुमसें है, देखों  यह  टूट न जाए। विश्वास का धागा ऐसा है जो,पास तेरे ले आए।   मन जुड़ा हुआ है श्याम तुम्ही से,तू ही राह दिखाए। किस पथ पहुचें द्वार तेरे, उस पथ को आप दिखाए।   भटकत मन को बांध सका ना,शेर…

आज का समाचार

Kavita Aaj ka Samachar | आज का समाचार

आज का समाचार ( Aaj Ka Samachar )   कोरोना इस बार पार कर गया लाख एक और पंद्रह हजार रहें सतर्क करें न कुतर्क यह महामारी है सारे रोगों पर भारी है यमराज से इसकी यारी है धरी रह गई सारी तैयारी है टीके पर टिकी उम्मीद है अब सारी लगवाने की अब बारी…

मैं मरूँगा

मैं मरूँगा | Kavita main Marunga

मैं मरूँगा ( Main Marunga )   मैं नहीं मरूँगा किसी सड़क दुर्घटना में नदी या तालाब में डूब कर !   मैं नहीं मरूँगा किसी ज़हर के सेवन से या नशे का आदि होने से !   मैं नहीं मरूँगा पँखे से लटक कर या किसी पेड़ पर झूल कर !   मैं नहीं…

पड़ोसी धर्म निभाएं

पड़ोसी धर्म निभाएं | Padosi par Kavita

पड़ोसी धर्म निभाएं ( Padosi Dharm Nibhayen )   सीमेंट गारे से बनी ईंट पाथर से गढ़ी कस्बे में खड़ी ये मंदिर मस्जिद बड़ी बड़ी गिरिजा गुरुद्वारा साहिब भी नहीं इंसानियत से बड़ी सदैव काम आएंगे सर्वप्रथम आपके पड़ोसी ही उन्हें मिलिए जुलिए घड़ी घड़ी रिश्तों में बनाए रखें विनम्रता सादगी और ईमानदारी माहौल बनेगा…

भागीदारी

भागीदारी | Bhagidari par Kavita

भागीदारी ( Bhagidari )   संस्थाओं में हमारी क्या है? कितनी है? कभी सोची है! इतनी कम क्यों है? हम इतने कम तो नहीं! फिर बौखलाहट बेचैनी क्यों नहीं? कानों पर जूं तक रेंगती नहीं, हम सब में ही है कमी; हालत बहुत है बुरी। न सोचते कभी न विचारते न स्वयं को निखारते! न…

उलझन

Ghazal | उलझन

उलझन ( Uljhan ) क्यों  उलझा  है  शेर हृदय तू, बेमतल की बातों में। जिस संग मन उलझा है तेरा, तू ना उसके सासों में। मना  ले  अपने चंचल मन को, वर्ना तू पछताएगा, प्रेम पतित हो जाएगा फिर,रूक ना सकेगा आँखो में। इतना ज्ञान भरा है तुझमें, फिर.भी क्यो अंजान रहे। इकतरफा है प्यार…