Kavita Jal ki Mahtta

जल की महत्ता | Kavita Jal ki Mahtta

जल की महत्ता ( Jal ki Mahtta ) पशु पक्षी पेंड़ और मानव, जितने प्राणी हैं थल पर, जल ही है सबका जीवन, सब आश्रित हैं जल पर, जल बिन कहीं नहीं है जीवन, चाहे कोई भी ग्रह हो, जल बॅचे तो बॅचे सब जीवन, इसलिए ही जल का संग्रह हो, जल से ही हरियाली…

एक लड़की, रजनीगंधा सी

एक लड़की, रजनीगंधा सी

एक लड़की,रजनीगंधा सी मस्त मलंग हाव भाव, तन मन अति सुडौल । अल्हड़ता व्यवहार अंतर, मधुर मृदुल प्रियल बोल। अधुना शैली परिधान संग, चारुता चंचल चंदा सी । एक लड़की, रजनीगंधा सी ।। अंग प्रत्यंग चहक महक , नव यौवन उत्तम उभार । आचार विचार मर्यादामय , अंतःकरण शोभित संस्कार । ज्ञान ध्यान निज सामर्थ्य…

Kavita Aao Shikhe

आओ सीखें | Kavita Aao Shikhe

आओ सीखें ( Aao Shikhe ) आओ सीखे फूलो से काटों के संग भी रहना तोड़ अगर उसको ले कोई तो उसे कुछ न कहना आओ सीखे पेड़ो से दूसरो के लिए जीना दूसरों को जीवन दे कर के खुद जहर हवा का पीना आओ सीखे सूरज से सदा चमकते रहना चाहे जो हो परिस्थित…

कभी सोचता हूँ मैं | Kabhi Sochta Hoon Main

कभी सोचता हूँ मैं | Kabhi Sochta Hoon Main

कभी सोचता हूँ मैं ( Kabhi sochta hoon main )   कभी सोचता हूँ मैं, नहीं है जरूरत तेरी। मगर क्यों मुझे फिर भी, आती है याद तेरी।। कभी सोचता हूँ मैं———————।। मुझको मिलते हैं हर दिन, यहाँ चेहरें हसीन। जो नहीं तुमसे कम, लगते हैं मेहजबीन।। मगर इन आँखों में तो, बसी है तस्वीर…

Kavita Saal ke Barah Maah

साल के बारह माह | Kavita Saal ke Barah Maah

साल के बारह माह ( Saal ke Barah Maah ) चमके सूरज चैत मे, ताप बढ़े वैशाख जेठ तपन धरती जरे, बरे पेड़ सब राख। गरमी से राहत मिले, बरसे जब आषाढ़ सावन रिमझिम मेघ से,भादो लागे बाढ़ । क्वार द्वार सूखन लगे,मौसम की नव आस गर्मी में नरमी आए, शीतल कार्तिक मास । अगहन…

उस दर पे कदम मत रखना

उस दर पे कदम मत रखना

उस दर पे कदम मत रखना जहाँ नहीं मिलता है प्यार तुम्हें। जहाँ नहीं मिलता सम्मान तुम्हें।। उस दर पे कदम मत रखना। उस घर में कदम मत रखना।। जो नहीं दे सकते तुमको खुशी। जज्बात तेरे जो समझे नहीं।। उस दर पे कदम———————।। तुझमें नहीं है कुछ भी कमी। क्यों उनकी गुलामी करता है।।…

दलबदल

दलबदल | व्यंग्य रचना

दलबदल ( Dalbadal ) शर्म कहां की, कैसी शराफत, सिध्दांत सभी, अपने बदल ! मिलेगी सत्ता, समय के साथ चल! दे तलाक़, इस पक्ष को, उसमें चल ! हो रही है, सत्ता के गलियारे, उथल-पुथल! तू भी अपना, मन बना, वर्ना पछताएगा कल! सब करते हैं, तू भी कर! चिंता कैसी, किसका डर? पंजा नहीं,ना…

भारतीय संस्कृति और सभ्यता

भारतीय संस्कृति और सभ्यता

भारतीय संस्कृति और सभ्यता   हमारी संस्कृति है महान देवताओं का वरदान l सरलता सादगी में आता है जीना l छोटी-छोटी बातों छोटी-छोटी खुशियों की हमें कोई कमी ना। वृक्ष ,पर्वत, नदियों से है गहरा नाता l कण-कण में हमें ईश्वर है नजर आता l जहां पराया दुख अपना लगता हैl भाईचारे का रखे सबसे…

धीरे-धीरे | Poem Dhire Dhire

धीरे-धीरे | Poem Dhire Dhire

धीरे-धीरे ( Dhire Dhire ) धीरे-धीरे शम्मा जलती रही, रफ्ता-रफ्ता पिंघलती रही ! दिल तड़पता रहा पल पल, रूह रह-रह मचलती रही ! शोला-जिस्म सुलगता रहा, शैनेः शैनेः रात ढलती रही ! ख़्वाब परवान चढ़ते रहे, ख़्यालो में उम्र टलती रही ! धड़कने रफ्तार में थी ‘धर्म’ सांसे रुक-रुक चलती रही !! डी के निवातिया…

औरों से कैसी बातें

औरों से कैसी बातें…?

औरों से कैसी बातें…? अब आकर तुम्हीं बतादो, हम गीत कहां तक गायें। पाकर एकान्त बहे जो, वे आंसू व्यर्थ न जायें। इस भांति प्रतीक्षा में ही, बीतेगीं कब तक घड़ियां। बिखरेंगी बुझ जायेंगी, आशाओं की फुलझड़ियां। मरुथल में आ पहुंची है, बहती जीवन की धारा। तुम दयासिंधु हो स्वामी, किसका है अन्य सहारा। भौतिक…