Shekhar Hindi Poetry

शेखर की कविताएं | Shekhar Hindi Poetry

एक पल एक पल तू- गीत मन में गुनगुना ले खामोशियां वक्त की छट जाएगी एक पल तू- मीत मन में जगा ले खाइयां ताउम्र भर जाएगी खुद्दार खुद्दार की राहेंअगम्य नहींलक्ष्य की प्राप्तिअसाध्य नहोंप्रण की लकीरेंमिटती नहींत्याग की बातेंमिथ्या नहींजीवन की आहुतिअकल्पनीय नहींमर-मिटने की हुंकारेहिलती नहीं उदयगामी सूर्यापासना वैदिक युगीन पर्व परम्परा कीअद्भुत कड़ी…

स्नेहका संचार | Kavita Sneh ka Sanchar

स्नेहका संचार | Kavita Sneh ka Sanchar

स्नेहका संचार ( Sneh ka Sanchar )   आदमी का मानवीय व्यवहार होना चाहिए ! हर हृदय में स्नेह का संचार होना चाहिए !! खिल सके अपना चमन, यह एकता के भाव से ! हो उल्लसित सारा जहां स्नेह व सद्भाव से !! त्यागकर इंसानियत को बढ़ नहीं पाएंगे हम ! अपनेपन से ही सभी…

Kavita Shaswat Prashn

शाश्वत प्रश्न | Kavita Shaswat Prashn

शाश्वत प्रश्न ( Shaswat Prashn )   मैं कौन हूं आया कहां से हूं यहां ! यह नहीं मालूम, है पुन: जाना कहां !! किसलिए हैं आए जगमें, और फिर क्यौं जाएंगे! इस राज को इस जन्म में, क्या समझ हम पायेंगे!! कुछ दिनों की जिंदगी के बाद होगा क्या मेरा ! नजाने फिर, कहां…

Kavita Garm Hawayen

गर्म हवाएं | Kavita Garm Hawayen

गर्म हवाएं ( Garm Hawayen )   बह रही हवाएं गर्म हैं मुश्किल है लू से बचकर रहना एक छत हि काफी नहीं तुम भी जरा संभलकर चलना उमस भरा माहौल है हो गई है खत्म सोच की शीतलता उठ सी गई है स्वाभिमान की आंधी यद्दयपि कुछ नहीं है कुशलता खो गई है पहचान…

Kavita Naya Daur

नया दौर | Kavita Naya Daur

नया दौर ( Naya Daur )   इतना बेरुख जमाना हो गया मुसकुराना तक गुनाह हो गया जजबातों का जमाना अब कहां हर इक शय अंजाना हो गया खून की नदियां कहा करती है दुश्मन अपना जमाना हो गया आखों में किसी के खुशियां कहा दर्द का ये पैमाना फसाना हो गया मिटा मजहब की…

Kavita Nav Sabhyata

नव-सभ्यता | Kavita Nav Sabhyata

नव-सभ्यता ( Nav Sabhyata ) नव सभ्यता की मजार में फटी चादर का रिवाज है आदिम जीवन की आवृत्ति में शरमों -हया की हत्या है प्रेम-भाव के विलोपन में तांडव का नर्तन है मशीनी मानव की खोज में मां-बेटियां नीलाम है हाय-हेलो की संस्कृति में सनातन हमारी श्मशान है पछुयायी की नशे में मिजाज हमारा…

Kavita Nari Man

नारी मन | Kavita Nari Man

नारी मन ( Nari Man )   नारी मन, प्रेम का दिव्य दर्पण परम माध्य सृष्टि सृजन, परिवार समाज अनूप कड़ी । सदा उत्सर्गी सोच व्यंजना, पर आनंद हित सावन झड़ी । संवाहिका संस्कृति परंपरा, अग्र पाद धर्म आस्था तर्पण । नारी मन, प्रेम का दिव्य दर्पण ।। मृदुल मधुर अंतर भाव, नैसर्गिकता अंग प्रत्यंग…

Kavita Smriti Shesh

स्मृति शेष | Kavita Smriti Shesh

स्मृति शेष ( Smriti Shesh ) हे धरा के पंथी नमन तुम्हें हे धरा के पंथी नमन तुम्हें घर छूटा मिला गगन तुम्हें। तुम चले गए हमें छोड़कर कहे थे रहेंगे रिश्ते जोड़कर। तय था जो होना हो गया हे पंथी तुम नींद में सो गया। चिर शांति मिले अमन तुम्हें हे धरा के पंथी…

Madhumay Ras Lahra de

मधुमय रस लहरा दे | Madhumay Ras Lahra de

मधुमय रस लहरा दे ( Madhumay Ras Lahra de )   नव-लय-छंद अलंकृत जननी मधुमय रस लहरा दे। वेद रिचाओं के आखर से रचना कर्म करा दे।। शब्द अर्थ का बोध नहीं है ना भावों की गहराई। बुद्धि विवेक जगाकर उरमें ललित कला लहराई।। दूर क्षितिज के रम्यछटा से अंधकार बिलगानी । कलम पकड़ कर…

Kavita Agar tu

अगर तू जो एक किताब है

अगर तू जो एक किताब है तुम्हें पढ़ना चाहता हूं तेरे हर एक पन्ने को अगर तू जिंदगी है जीना चाहता हूं आहिस्ता-आहिस्ता पूरी उम्र अगर तू फूल है तो मैं तेरा रंग बनना चाहता हूं अगर तू जो एक किताब है तुम्हें पढ़ना चाहता हूं तेरी तस्वीर में बिखरे रंगों का एक एहसास बनना…