दीपक वोहरा की कविताएं

दीपक वोहरा की कविताएं | Deepak Vohra Poetry

कुछ देर ही की तो बात है

कुछ देर ही की तो बात है
साथ चल सको तो चलो
न जाने फिर कब कहां मिलना हो
गर साथ चल सको तो चलो
तुम्हारी मंजिल इधर है
मेरी मंजिल भी बस थोड़ी उधर है
गर साथ चल सको तो चलो
कुछ देर ही की तो बात है
कुछ पल मेरे साथ जी सको तो जीओ
चलते चलते संभवत तुम्हारा मन बदल जाए
तुम्हारे मन में मेरे लिए प्रेमभाव जाग जाए
दो अनजाने लैला मजनू, शीरी फ़रियाद,
सोनी महीवाल या रोमियो जूलियट हो जाए
कुछ देर ही की तो बात है
साथ चल सको तो चलो

आओ संवाद करें

कोहरा और बढ़ेगा
बर्फ और जमेगी
आओ संवाद करें
थोड़ी चुप्पी तो टूटेगी

साये और घने होंगे
अंधेरे और बढ़ेंगे
सूरज और निगला जायेगा
आओ उजालों के गीत सुने सुनाएं
सूरज को डूबने से बचाए

कैसा खेल है

इधर झोपड़ी
उधर महल है
देखो!धन्ना सेठ का
कैसा खेल है

एक तरफ असंख्य दीये
रोशनी की चकाचौंध
दूसरी तरफ न दिये
बाती न तेल है

झोपड़ी रोटी को भी तरसे
महलों में भोगो की
रेलमपेल है

दिलों में बैठा सदियों से
गहरा अंधेरा
सूरज डूबा रहा ताउम्र
न जाने कब होगा सवेरा

उठो साथियो!
उठो आज़ादी के दीवानो
बहुत सो लिए
अपने मसीहा के इंतज़ार में
मसीहा भी बिक गए
अमृतकाल में

ज़ालिम हाकिम
लूट रहा तुम्हारी मेहनत
अठारह घंटो लगा रहता है
इस काम में

लोकतंत्र सूरज पर पहरा है
फिरकापरस्त बादलों का
बच्चों के चाचा तरक्कीपसंद सब
भेज दिए जाते हैं जेल

उठो जागो साथियो!
सोये मत रहो
सवेरा यूहीं नहीं आयेगा
करो कुछ तुम संघर्ष
करे कुछ हम मेहनत
सवेरा और कौन लायेगा

दीपक वोहरा

(जनवादी लेखक संघ हरियाणा)

यह भी पढ़ें:-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *