देखना है | Dekhna Hai
देखना है
ज़ब्त अपना आजमाकर देखना है,
उसे सितमगर को भुला कर देखना है।
ज़र्फ़ की उसके मिसालें लोग देते,
बस जरा गुस्सा दिला कर देखना है।
चंद सिक्कों में सुना बिकती मोहब्बत
पर कहाॅं बाजार जाकर देखना है।
वह ख़ुदा रहता हमारे ही दिलों में
बुग़्ज़ की ऐनक हटाकर देखना है।
इश्क़-ए-दुश्वारी में लज्ज़त है अगर तो,
फिर हमें भी दिल लगा कर देखना है।
ज़िंदगी भर हम रहे नाकाम तो क्या,
अब किसी के काम आकर देखना है।
पूछता तर्क-ए-त’अल्लुक का सबब वो
उसकी कोताही गिनाकर देखना है।

सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
ज़ब्त – बर्दाश्त
ज़र्फ़ – सहनशीलता
बुग़्ज़ – वैमनस्यता
लज्ज़त – मज़ा
तर्क-ए-त’अल्लुक – संबंध समाप्त करना
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