दो बूँद पानी चाहिए | Do Boond Pani Chahiye
दो बूँद पानी चाहिए
( Do boond pani chahiye )
बात तो अहल-ए-ख़िरद यह भी सिखानी चाहिए
हर बशर को देश की अज़्मत बढ़ानी चाहिए
ऐ मेरे मालिक ये तेरी मेहरबानी चाहिए
काम आये सब के ऐसी ज़िंन्दगानी चाहिए
दे गया मायूसियाँ फिर से समुंदर का जवाब
जबकि मेरी प्यास को दो बूँद पानी चाहिए
क्यों भला पकड़े हुए हो रहबरों की उँगलियाँ
राह अपनी मंज़िलों की ख़ुद बनानी चाहिए
जिससे मिल जायें तेरे किरदार को रानाइयाँ
ऐसी इक तस्वीर भी घर में लगानी चाहिए
सुनते ही मेरी ग़ज़ल चेहरा सभी का खिल उठा
दाद अब इस अंजुमन से कुछ तो आनी चाहिए
ख़ुद ब ख़ुद आजायेंगी सहन-ए-चमन में तितलियाँ
फ़स्ल कुछ फूलों की भी साग़र उगानी चाहिए
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
ख़िरद–बुद्धि
अहले –वाले
अज़्मत–गौरव ,सम्मान
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