Doha Dashak

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दोहा दशक

( Doha Dashak )

 

 

किया वतन की शान से, जिसने भी खिलवाड़।

मिले दंड कठोर उसे, जाये जेल तिहाड़।

 

कृषक जनों की भीड़ में, शामिल कुछ शैतान।

कभी नहीं वो चाहते, बढ़े वतन की शान।

 

डायन प्रथा के विरुद्ध, लड़कर हुई महान।

छुटनी देवी को मिला, पद्मश्री ससम्मान।।

 

मौसम की मानिंद ही, जिसका होय स्वभाव।

धोखा देता है वही, ज्यों कागज की नाव।

 

शान पिता की बेटियां, माता का अरमान।

भाई की है राखियां, आंगन की मुस्कान।

 

खुद को पढ़ना जानना, बहुत कठिन है काम।

जिसने ऐसा कर लिया, सीखा विषय तमाम।

 

धर्म सिखाता आचरण, और बढ़ाता ज्ञान।

सत्कर्मों से आदमी, बनता मगर महान।

 

सोच समझके बोलिए, शब्द सभी श्रीमान।

मिले गालियां शब्द से, शब्द बढ़ाये मान।

 

यह जीवन इक जंग है,जीत मिले या हार।

किसी हाल न छोड़िए,मानव का किरदार।

 

खायें सूखी रोटियॉं,या के छप्पन भोग।

मानव हित में कीजिए,तन-मन का उपयोग।

✍️

कवि बिनोद बेगाना

जमशेदपुर, झारखंड

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