डॉ. सत्यवान सौरभ की कविताएं | Dr. Satywan Saurabh Hindi Poetry
दोहरे सत्य
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कहाँ सत्य का पक्ष अब, है कैसा प्रतिपक्ष।
जब मतलब हो हाँकता, बनकर ‘सौरभ’ अक्ष॥
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बदला-बदला वक़्त है, बदले-बदले कथ्य।
दूर हुए इंसान से, सत्य भरे सब तथ्य॥
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क्या पाया, क्या खो दिया, भूल रे सत्यवान।
किस्मत के इस केस में, चलते नहीं बयान॥
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रखना पड़ता है बहुत, सीमित, सधा बयान।
लड़ना सत्य ‘सौरभ’ से, समझो मत आसान॥
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कर दी हमने जिंदगी, इस माटी के नाम।
रखना ये संभालकर, सत्य तुम्हारा काम॥
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काम निकलते हों जहाँ, रहो उसी के संग।
सत्य यही बस सत्य है, यही आज के ढंग॥
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चुप था तो सब साथ थे, न थे कोई सवाल।
एक सत्य बस जो कहा, मचने लगा बवाल॥
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‘सौरभ’ कड़वे सत्य से, गए हज़ारों रूठ।
सीख रहा हूँ बोलना, अब मैं मीठा झूठ॥
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तुमको सत्य सिखा रही, आज वक़्त की मात।
हम पानी के बुलबुले, पल भर की औक़ात॥
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जैसे ही मैंने कहे, सत्य भरे दो बोल।
झपटे झूठे भेड़िये, मुझ पर बाहें खोल॥
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कहा सत्य ने झूठ से, खुलकर बारम्बार।
मुखौटे किसी और के, रहते है दिन चार॥
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मन में कांटे है भरे, होंठों पर मुस्कान।
दोहरे सत्य जी रहे, ये कैसे इंसान॥
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सच बोलकर पी रहा, ज़हर आज सुकरात।
कौन कहे है सत्य के, बदल गए हालात॥
बदल गई देहात
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अपने प्यारे गाँव से, बस है यही सवाल।
बूढा पीपल है कहाँ, कहाँ गई चौपाल॥
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रही नहीं चौपाल में, पहले जैसी बात।
नस्लें शहरी हो गई, बदल गई देहात॥
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जब से आई गाँव में, ये शहरी सौगात।
मेड़ करे ना खेत से, आपस में अब बात॥
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चिठ्ठी लाई गाँव से, जब यादों के फूल।
अपनेपन में खो गया, शहर गया मैं भूल॥
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शहरी होती जिंदगी, बदल रहा है गाँव।
धरती बंजर हो गई, टिके मशीनी पाँव॥
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गलियाँ सभी उदास हैं, पनघट हैं सब मौन।
शहर गए उस गाँव को, वापस लाये कौन॥
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बदल गया तकरार में, अपनेपन का गाँव।
उलझ रहे हर आंगना, फूट-कलह के पाँव॥
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पत्थर होता गाँव अब, हर पल करे पुकार।
लौटा दो फिर से मुझे, खपरैला आकार॥
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खत आया जब गाँव से, ले माँ का सन्देश।
पढ़कर आंखें भर गई, बदल गया वह देश॥
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लौटा बरसों बाद मैं, बचपन के उस गाँव।
नहीं रही थी अब जहाँ, बूढ़ी पीपल छाँव॥
सहमा-सहमा आज
सास ससुर सेवा करे, बहुएँ करती राज।
बेटी सँग दामाद के, बसी मायके आज॥
कौन पूछता योग्यता, तिकड़म है आधार।
कौवे मोती चुन रहे, हंस हुये बेकार॥
परिवर्तन के दौर की, ये कैसी रफ़्तार।
गैरों को सिर पर रखें, अपने लगते भार॥
अंधे साक्षी हैं बनें, गूंगे करें बयान।
बहरे थामें न्याय की, ‘सौरभ’ आज कमान॥
कौवे में पूर्वज दिखे, पत्थर में भगवान।
इंसानो में क्यों यहाँ, दिखे नहीं इंसान॥
जब से पैसा हो गया, सम्बंधों की माप।
मन दर्जी करने लगा, बस खाली आलाप॥
दहेज़ आहुति हो गया, रस्में सब व्यापार।
धू-धू कर अब जल रहे, शादी के संस्कार॥
हारे इज़्ज़त आबरू, भीरु बुज़दिल लोग।
खोकर अपनी सभ्यता, प्रश्नचिन्ह पर लोग॥
अच्छे दिन आये नहीं, सहमा-सहमा आज।
‘सौरभ’ हुए पेट्रोल से, महंगे आलू-प्याज॥
गली-गली में मौत है, सड़क-सड़क बेहाल।
डर-डर के हम जी रहे, देख देश का हाल॥
लूट-खून दंगे कहीं, चोरी भ्रष्टाचार॥
ख़बरें ऐसी ला रहा, रोज़ सुबह अख़बार।
मंच हुए साहित्य के, गठजोड़ी सरकार।
सभी बाँटकर ले रहे, पुरस्कार हर बार॥
नई सदी में आ रहा, ये कैसा बदलाव।
संगी-साथी दे रहे, दिल को गहरे घाव॥
हम खतरे में जी रहे, बैठी सिर पर मौत।
बेवजह ही हम बने, इक-दूजे की सौत॥
जर्जर कश्ती हो गई, अंधे खेवनहार।
खतरे में ‘सौरभ’ दिखे, जाना सागर पार॥
थोड़ा-सा जो कद बढ़ा, भूल गए वह जात।
झुग्गी कहती महल से, तेरी क्या औक़ात॥
मन बातों को तरसता, समझे घर में कौन।
दामन थामे फ़ोन का, बैठे हैं सब मौन॥
हत्या-चोरी लूट से, कांपे रोज़ समाज।
रक्त रंगे अख़बार हम, देख रहे हैं आज॥
कहाँ बचे भगवान से, पंचायत के पंच।
झूठा निर्णय दे रहे, ‘सौरभ’ अब सरपंच॥
योगी भोगी हो गए, संत चले बाज़ार।
अबलायें मठलोक से, रह-रह करे पुकार॥
दफ्तर, थाने, कोर्ट सब, देते उनका साथ।
नियम-कायदे भूलकर, गर्म करे जो हाथ॥
हारा-थका किसान
बजते घुँघरू बैल के, मानो गाये गीत।
चप्पा-चप्पा खिल उठे, पा हलधर की प्रीत॥
देता पानी खेत को, जागे सारी रात।
चुनकर कांटे बांटता, फूलों की सौगात॥
आंधी खेल बिगाड़ती, मौसम दे अभिशाप।
मेहनत से न भागता, सर्दी हो या ताप॥
बदल गया मौसम अहो, हारा-थका किसान।
सूखे-सूखे खेत हैं, सूने बिन खलिहान॥
चूल्हा कैसे यूं जले, रही न कौड़ी पास।
रोते बच्चे देखकर, होता ख़ूब उदास॥
ख़्वाबों में खिलते रहे, पीले सरसों खेत।
धरती बंजर हो गई, दिखे रेत ही रेत॥
दीपों की रंगीनियाँ, होली का अनुराग।
रोई आँखें देखकर, नहीं हमारे भाग॥
दुःख-दर्दों से है भरा, हलधर का संसार।
सच्चे दिल से पर करे, ये माटी से प्यार॥
लाये सिंघाड़े
ठेले भर लाये सिंघाड़े के।
दिन आए फिर जाड़े के॥
पानी में ये मोती उगता।
सुंदर रूप तिकोना दिखता॥
जाड़े में हर बार ये आता।
सबके मन को ख़ूब भाता॥
बच्चों इसके गुण भरपूर।
कब्ज बदहजमी करता दूर॥
इसमें फ़ाईबर, प्रोटीन रहता।
ब्लड प्रेशर सब ये सहता॥
व्रत त्यौहार इससे मनती।
हलवा रोटी इससे बनती॥
जब भी तुम जाओ बाजार।
सिंघाड़े लाओ हर बार॥
लाकर ख़ूब सिंघाड़े खाओ।
सेहत अपनी अच्छी बनाओ॥
आशाओं के रंग
1
बने विजेता वह सदा, ऐसा मुझे यक़ीन।
आँखों में आकाश हो, पांवों तले ज़मीन॥
2
तू भी पायेगा कभी, फूलों की सौगात।
धुन अपनी मत छोड़ना, सुधरेंगे हालात॥
3
बीते कल को भूलकर, चुग डालें सब शूल।
बोयें हम नवभोर पर, सुंदर-सुरभित फूल॥
4
तूफानों से मत डरो, कर लो पैनी धार।
नाविक बैठे घाट पर, कब उतरें हैं पार॥
5
छाले पांवों में पड़े, मान न लेना हार।
काँटों में ही है छुपा, फूलों का उपहार॥
6
भँवर सभी जो भूलकर, ले ताकत पहचान।
पार करे मझदार वो, सपनों का जलयान॥
7
तरकश में हो हौंसला, कोशिश के हो तीर।
साथ जुड़ी उम्मीद हो, दे पर्वत को चीर॥
●●●8
नए दौर में हम करें, फिर से नया प्रयास।
शब्द क़लम से जो लिखें, बन जाये इतिहास॥
9
आसमान को चीरकर, भरते वही उड़ान।
जवां हौसलों में सदा, होती जिनके जान॥
10
उठो चलो, आगे बढ़ो, भूलो दुःख की बात।
आशाओं के रंग से, भर लो फिर ज़ज़्बात॥
11
छोड़े राह पहाड़ भी, नदियाँ मोड़ें धार।
छू लेती आकाश को, मन से उठी हुँकार॥
12
हँसकर सहते जो सदा, हर मौसम की मार।
उड़े वही आकाश में, अपने पंख पसार॥
13
हँसकर साथी गाइये, जीवन का ये गीत।
दुःख सरगम-सा जब लगे, मानो अपनी जीत॥
14
सुख-दुःख जीवन की रही, बहुत पुरानी रीत।
जी लें, जी भर जिंदगी, हार मिले या जीत॥
15
खुद से ही कोई यहाँ, बनता नहीं कबीर।
सहनी पड़ती हैं उसे, जाने कितनी पीर॥
ठंड हुई पुरजोर
लगे ठिठुरने गात सब,
निकले कम्बल शाल।
सिकुड़ रहे हैं ठंड से,
हाल हुआ बेहाल।।
बाहर मत निकलो कहे,
बहुत ठंड है आज।
कान पकते सुनते हुए,
दादी की आवाज।।
जाड़ा आकर यूं खड़ा,
ठोके सौरभ ताल।
आग पकड़ने से डरे,
गीले पड़े पुआल।।
सौरभ सर्दी में हुआ,
जैसे बर्फ जमाव।
गली मुहल्ले तापते,
बैठे लोग अलाव।।
धूप लगे जब गुनगुनी,
मिले तनिक आराम।
सर्दी में करते नहीं,
हाथ पैर भी काम।।
निकलो घर से तुम यदि,
रखना बच्चों का ध्यान।
सुबह सांझ घर पर रहो,
ढककर रखना कान।।
लापरवाही मत करो,
ठंड हुई पुरजोर।
ओढ़ रजाई लेट लो,
उठिए जब हो भोर।।
ईश विश्कर्मा हमें
विश्वकर्मा जगत बसे, सुन्दर सर्जनकार।
नव्यकृति नित ही गढ़े, करे रूप साकार।।
अस्त्र-शस्त्र सब गढ़े, रचे अटारी धाम।
पूज्य प्रजापति श्री करे, सौरभ पावन काम।।
गढ़ते तुम संसार को, रचते नव औजार
तुम अभियंता जगत के, सच्चे तारणहार।।
तुमसे वाहन साधन है, जीवन के आधार।
तुमसे ही यश-बल बढे, तुमसे सब उपहार।।
ईश विश्वकर्मा करे, कैसे शब्द बखान।
जग में मिलता है नहीं, बिना आपके ज्ञान।।
आप कर्म के देवता, कर्म ज्योति का पुंज।
ईश विश्कर्मा जहाँ, सुरभित होय निकुंज।।
सृष्टि कर्ता अद्भुत सकल, बांटे हित का ज्ञान।
अतुल तेज़ सौरभ भरे, हरते सभी अज्ञान।।
भरते हुनर हाथ में, देकर शिल्प विज्ञान।
ईश विश्कर्मा हमें, देते नव पहचान।।
ईश विश्कर्मा हमें, दीजे दया निधान।
बैठा सौरभ आपके, चरण कमल धर ध्यान।।
एक-नेक हरियाणवी!!
धर्म-कर्म का पालना, गीता का उपदेश !
सच में हरि का वास है, हरियाणा परदेश !!
अमन-चैन की ये धरा, है वेदों का ज्ञान !
भूमि है ये वीर की, रखें देश की आन !!
हट्टे-कट्टे लोग हैं, अलग-अलग है भेष,
पर हरियाणा एक है, न कोई राग द्वेष !!
कुरुक्षेत्र की ये धरा, करें कर्म निर्वाह !
पानीपत मैदान है, ऐतिहासिक गवाह !!
चप्पे-चप्पे है यहाँ, बलिदानी उपदेश,
आंदोलन का गढ़ यही, जिससे भारत देश !!
मर्द युद्धों को पलटते, पदक जीतती बीर !
एक-नेक हरियाणवी, सिखलाते हैं धीर !!
मेल-जोल त्योहार में, गीतों का परिवेश,
मानवता का पालना, गाये प्रेम सन्देश !!
माथे इसके सरस्वती, कहते वेद विशेष !
सच में हरि का वास है, हरियाणा परदेश !!
जलता कैसे दीप
शुभ दीवाली आ गई, झूम रहा संसार।
माँ लक्ष्मी का आगमन, सजे सभी घर द्वार।।
*
सुख वैभव सबको मिले, मिले प्यार उपहार।
सच में सौरभ हो तभी, दीवाली त्यौहार।।
*
दीवाली का पर्व ये, हो सौरभ तब खास।
आ जाए जब झोंपड़ी, महलों को भी रास।।
*
जिनके स्वच्छ विचार हैं, रखे प्रेम व्यवहार।
उनके सौरभ रोज ही, दीवाली त्यौहार।।
*
दीवाली उनकी मने, होय सुखी परिवार।
दीप बेच रोशन करे, सौरभ जो घर द्वार।।
*
मैंने उनको भेंट की, दीवाली और ईद।
जान देश के नाम कर, जो हो गए शहीद।।
*
फीके-फीके हो गए, त्योहारों के रंग।
दीप दिवाली के बुझे, होली है बेरंग।।
*
नेह भरे मोती नहीं, खाली मन का सीप।
सूख गई हैं बातियाँ, जलता कैसे दीप।।
*
बाती रूठी दीप से, हो कैसे प्रकाश।
बैठा मन को बांधकर, अंधियारे का पाश।।
*
दीया माटी का जले, रौशन हो घर द्वार।
जीवन भर आशीष दे, तुम्हे खूब कुम्हार।।
*
दीया बाती ने किया, प्रेमपूर्ण व्यवहार।
जगमग हुई मुँडेर है, प्रकाशमय घर द्वार ।।
*
दीया -बाती- सी परी, तेरी -मेरी प्रीत।
हर्षित हो उल्लास उर, गाये मिलकर गीत।।
*
दीया में बाती जले, पावन ये व्यवहार।
अन्तर्मन उजियार ही, है सच्चा श्रृंगार।।
*
सदा शहीदों का जले, इक दीया हर हाल।
मने तभी दीपावली, देश रहे खुशहाल ।।
*
दीया- बाती- सा बने, आपस में विश्वास।
चिंता सारी दूर हो, खुशियां करे निवास।।
*
तपती बाती रात भर, लिए अटल विश्वास।
तब जाकर दीया भरे, है आशा उल्लास।।
*
दीये सा जीवन करे, इस जगती के नाम।
परहित हेतु जो है मिटे, जीवन उनका धाम।।
*
दीया माटी का जले, रौशन हो घर द्वार।
जीवन भर आशीष दे, तुम्हे खूब कुम्हार।।
दीया माटी का जले
दीया माटी का जले, रौशन हो घर द्वार।
जीवन भर आशीष दे, तुम्हे खूब कुम्हार।।
दीया बाती ने किया, प्रेमपूर्ण व्यवहार।
जगमग हुई मुँडेर है, प्रकाशमय घर द्वार ।।
दीया -बाती- सी परी, तेरी -मेरी प्रीत।
हर्षित हो उल्लास उर, गाये मिलकर गीत।।
दीया में बाती जले, पावन ये व्यवहार।
अन्तर्मन उजियार ही, है सच्चा श्रृंगार।।
सदा शहीदों का जले, इक दीया हर हाल।
मने तभी दीपावली, देश रहे खुशहाल ।।
दीया- बाती- सा बने, आपस में विश्वास।
चिंता सारी दूर हो, खुशियां करे निवास।।
तपती बाती रात भर, लिए अटल विश्वास।
तब जाकर दीया भरे, है आशा उल्लास।।
दीये सा जीवन करे, इस जगती के नाम।
परहित हेतु जो है मिटे, जीवन उनका धाम।।
दीया माटी का जले, रौशन हो घर द्वार।
जीवन भर आशीष दे, तुम्हे खूब कुम्हार।।
दूधवाला
(बाल कविता)
घर-घर आता सुबह शाम,
ड्रम दूध के हाथों में थाम।
दरवाजे पर आवाज लगाता,
संग में लस्सी भी लाता।
सुबह-सुबह जल्दी है उठता,
उठकर दूध इकट्ठा करता।
साफ-सफाई रखता पूरी,
तोल न करता कभी अधूरी।
मिलावट से है कतराता,
दूध हमेशा शुद्ध ही लाता।
आंधी, वर्षा, सर्दी, गर्मी,
भूल सदा समय पर आता।
सही समय पर आता दर पर,
चाय बने तभी तो घर पर।
सबको भाता ये मतवाला,
नाम है इसका दूधवाला।
निष्ठावान कलाम
सदियों में है जनमते,
निष्ठावान कलाम।
मातृभूमि को समर्पित,
किये अनूठे काम।।
धीर वीर थे साहसी,
करते सभी सलाम।
पूत सपूत अनेक हैं,
न्यारे एक कलाम।।
नित शाबाशी मिल रही,
किये अनोखे काम।
खुदगर्जी में डूबकर,
बदले नहीं कलाम।।
जिये मरे हम वतन पे,
करिये ऐसे काम।
बनो विवेकानंद तुम,
या फिर बनो कलाम।।
ज्ञान क्षितिज पर था रहा,
हुआ नहीं अंधकार।
सौरभ आज कलाम से,
जग में है उजियार।।
अपने ज्ञान विज्ञान से,
बदल गये वो दौर।
खोजे सभी कलाम की,
सृजन की सिरमौर।।
खेलें मिलकर खेल
( बाल कविता)
आओ बच्चों हम सभी,
खेलें मिलकर खेल।
मिलती किसको क्या सजा,
किसको मिलती जेल।।
खेल-खेल में आज यूं,
पुलिस बनूं मैं आज।
बुरा न मानो बात का,
चोर बनो तुम राज।।
भागा जल्दी राज सुन,
सीटी की आवाज।
पर राजू के हाथ तब,
लग गए जल्दी राज।।
हथकड़ियाँ अब राज के,
दी हाथों में डाल।
सीना फूला गर्व से,
चला लिए संभाल।।
आयी मम्मी पर तभी,
कड़े सौरभ माथ।
एक हाथ तो माथ था,
दूजे हंटर हाथ।।
सुनकर सहमे हम तभी,
मम्मी की आवाज।
भागे दोनों जोर से,
सौरभ राजू राज।।
बोली मम्मी तब मगर,
कुछ तो कर लो याद।
खेलो चाहे तुम सभी,
फिर तुम उसके बाद।।
दोनों मिलकर अब तभी,
लिखते रहते लेख।
हँसते रहते हैं सदा,
दादू यह सब देख।।
भेद विभीषण ने दिए
दुनिया रखती क्यों नहीं, आज विभीषण नाम।
तुम तो सब कुछ जानते, बोलो मेरे राम।।
वध दशानन कह रहा, ये भी तो इक बात।
करो विभीषण सा नहीं, भाई पर आघात।।
जयचंद, शकुनी, मंथरा, और दुष्ट मारीच।
नीचों के इतिहास में, रहे विभीषण नीच।।
गैरों से ज्यादा कठिन, अपनों की है मार।
भेद विभीषण से गया, रावण लंका हार।।
भेद विभीषण ने दिए, गए दशानन हार।
जीती लंका राम ने, कर भाइयों में रार।।
वैरी से ज्यादा किया, रावण पर यूं घात।
भेद विभीषण ने दिए, कही जिगर की बात।।
सौरभ विषधर से अधिक, विष अपनों के पास।
कभी विभीषण पर नहीं, करना मत विश्वास।।
दुश्मन में ताकत कहाँ, पकड़ सके जो हाथ।
कुंभकर्ण से तुम बनो, दो भाई का साथ।।
हर घर में कैसी लगी, ये मतलब की आग।
अपनों को ही डस रहे, बने विभीषण नाग।।
सत्य धर्म की जंग में, जीत गए थे राम।
मगर विभीषण तो रहे, सदियों तक बदनाम।।
दीवाली का पर्व ये
शुभ दीवाली आ गई, झूम रहा संसार।
माँ लक्ष्मी का आगमन, सजे सभी घर द्वार।।
सुख वैभव सबको मिले, मिले प्यार उपहार।
सच में सौरभ हो तभी, दीवाली त्यौहार।।
दीवाली का पर्व ये, हो सौरभ तब खास।
आ जाए जब झोंपड़ी, महलों को भी रास।।
जिनके स्वच्छ विचार हैं, रखे प्रेम व्यवहार।
उनके सौरभ रोज ही, दीवाली त्यौहार।।
दीवाली उनकी मने, होय सुखी परिवार।
दीप बेच रोशन करे, सौरभ जो घर द्वार।।
मैंने उनको भेंट की, दीवाली और ईद।
जान देश के नाम कर, जो हो गए शहीद।।
फीके-फीके हो गए, त्योहारों के रंग।
दीप दिवाली के बुझे, होली है बेरंग।।
नेह भरे मोती नहीं, खाली मन का सीप।
सूख गई हैं बातियाँ, जलता कैसे दीप।।
बाती रूठी दीप से, हो कैसे प्रकाश।
बैठा मन को बांधकर, अंधियारे का पाश।।
जलते पुतले पूछते
घर-घर में रावण हुए, चौराहे पर कंस ।
बहू-बेटियां झेलती, नित शैतानी दंश ।।
मन के रावण दुष्ट का, होगा कब संहार ।
जलते पुतले पूछते, बात यही हर बार ।।
पहले रावण एक था, अब हर घर, हर धाम।
राम नाम के नाम पर, पलते आशाराम।।
बैठा रावण हृदय जो, होता है क्या भान।
मान किसी का कब रखे, सौरभ ये अभिमान।।
रावण वध हर साल ही, होते है अविराम।
पर रावण मन में रहा, सौरभ क्या परिणाम।।
हारे रावण अहम तब, मन हो जब श्री राम।
धीर वीर गम्भीर को, करे दुनिया प्रणाम।।
झूठ-कपट की भावना, द्वेष छल अहंकार।
सौरभ रावण शीश है, इनका हो संहार।।
अंतर्मन से युद्ध कर, दे रावण को मार।
तभी दशहरे का मने, सौरभ सच त्यौहार।।
राम राज के नाम पर, रावण हैं चहुँ ओर।
धर्म-जाति दानव खड़ा, मुँह बाए पुरजोर।।
चिठ्ठी आई गाँव से
चिठ्ठी आई गाँव से, ले यादों के फूल।
अपनेपन में खो गया, शहर गया मैं भूल।।
सिसक रही हैं चिट्ठियां, छुप-छुपकर साहेब।
जब से चैटिंग ने भरा, मन में झूठ फ़रेब।।
चिठ्ठी-पत्री-डाकिया, बीते कल की बात।
अब कोने में हो रही, चैटिंग से मुलाक़ात।।
ना चिठ्ठी सन्देश है, ना आने की आस।
इंटरनेट के दौर में, रिश्ते हुए खटास।।
सूनी गलियाँ पूछतीं, पूछ रही चौपाल।
कहाँ गया वो डाकिया, पूछे जिससे हाल।।
चिठ्ठी लाई गाँव से, जब राखी उपहार।
आँसूं छलके आँख से, देख बहन का प्यार।।
ऑनलाइन ही आजकल, सपने भरे उड़ान।
कहाँ बची वो चिट्ठियां, जिनमें धड़कन जान।।
ना चिठ्ठी संदेश कुछ, गए महीनों बीत।
चैटिंग के संग्राम में, घायल सौरभ प्रीत।।
अब ना आयेंगे कभी, चिट्ठी में सन्देश।
बचे कबूतर है कहाँ, आज देश परदेश।।
निकलेगा परिणाम कल
आज तुम्हारे ढोल से, गूँज रहा आकाश !
निकलेगा परिणाम कल, होगा पर्दाफाश !!
जिनकी पहली सोच ही, लूट,नफ़ा श्रीमान !
पाओगे क्या सोचिये, चुनकर उसे प्रधान !!
नेता जी है आजकल, गिनता किसके नोट !
अक्सर ये है पूछता ?, मुझसे मेरा वोट !!
जात-धर्म की फूट कर, बदल दिया परिवेश !
नेता जी सब दोगले, बेचे, खाये देश !!
कर्ज गरीबों का घटा, कहे सदा सरकार !
चढ़ती रही मजलुम के, सौरभ सदा उधार !!
सौरभ सालों बाद भी, देश रहा कंगाल !
जेबें अपनी भर गए, नेता और दलाल !!
लोकतंत्र अब रो रहा, देख बुरे हालात !
वोटों में चलते दिखें, थप्पड़-घूसे, लात !!
देश बांटने में लगी, नेताओं की फ़ौज !
खाकर पैसा देश का, करते सारे मौज !!
पद-पैसे की आड़ में, बिकने लगा विधान !
राजनीति में घुस गए, अपराधी-शैतान !!
राजनीति नित बांटती, घर, कुनबे, परिवार !
गाँव-गली सब कर रहे, आपस में तकरार !!
देना किसको वोट
*
बजी दुंदभी वोट की, आये नेता द्वार।
भाईचारा हो सभी से, मन में करो विचार।।
*
इतनी भी ना बहक हो, इस चुनाव मधुमास।
रिश्तों का रोना लिखे, मितवा बारहमास।।
*
धन-बल-पद के लोभ की, छोड़े सौरभ प्रीत।
जो नेता जनहित करे, वोट उसे हो मीत ।।
*
वोट करो सब योग्य को, दाब राग दे छोड़।
जाति-पाति की भावना, के बंधन सब तोड़।।
*
मूल्य वोट का है बहुत, वोट बड़ा अनमोल।
देना किसको वोट है, सौरभ मन से तोल।।
*
सत्ता का ये खेल है, करे प्रपंच हज़ार।
बस अपना मत देखिये, रखे सलामत प्यार।।
*
वोट बड़ा अनमोल है, करो न इसका मोल।
मर्जी है ये आपकी, पड़े न इसमें झोल।।
*
जिनकी-जिनकी वोट हैं, सुनो आज ये बात।
एक दिनी मेहमान पर, क्यों भिड़े दिन रात।।
*
मत पाने की होड़ में, सुन लो मेरे मीत।
भाईचारा बस रहे, मिले हार या जीत।।
*
बूढा पीपल हैं कहाँ !
अपने प्यारे गाँव से, बस है यही सवाल !
बूढा पीपल हैं कहाँ,गई कहाँ चौपाल !!
रही नहीं चौपाल में, पहले जैसी बात !
नस्लें शहरी हो गई, बदल गई देहात !!
जब से आई गाँव में, ये शहरी सौगात !
मेड़ करें ना खेत से, आपस में अब बात !!
चिठ्ठी लाई गाँव से, जब यादों के फूल !
अपनेपन में खो गया, शहर गया मैं भूल !!
शहरी होती जिंदगी, बदल रहा हैं गाँव !
धरती बंजर हो गई, टिके मशीनी पाँव !!
गलियां सभी उदास हैं, सब पनघट हैं मौन !
शहर गए गाँव को, वापस लाये कौन !!
चिठ्ठी लाई गाँव से, जब यादों के फूल !
अपनेपन में खो गया, शहर गया मैं भूल !!
बदल गया तकरार में, अपनेपन का गाँव !
उलझ रहें हर आंगना, फूट-कलह के पाँव !!
पत्थर होता गाँव अब, हर पल करे पुकार !
लौटा दो फिर से मुझे, खपरैला आकार !!
खत आया जब गाँव से, ले माँ का सन्देश !
पढ़कर आंखें भर गई, बदल गया वो देश !!
लौटा बरसों बाद मैं, बचपन के उस गाँव !
नहीं रही थी अब जहाँ, बूढी पीपल छाँव !!
रखता कौन खयाल।
वृद्धों को बस चाहिए, इतनी- सी सौगात।
लाठी पकड़े हाथ हो, करने को दो बात।।
वृद्धों की हर बात का, रखता कौन खयाल।
आधुनिकता की आड़ में, हर घर है बेहाल।।
यश-वैभव- सुख-शांति के, यही सिद्ध सोपान।
घर है बिना बुजुर्ग के, खाली एक मकान।।
होते बड़े बुजुर्ग है, सारस्वत सम्मान।
मिलता इनसे ही हमें, है अनुभव का ज्ञान।।
सब दरवाजे बंद है, आया कैसा काल।
बड़े बुजुर्गो को दिया, घर से आज निकाल।।
बड़े बुजुर्गो से मिला, जिनको आशीर्वाद।
उनका जीवन धन्य है, रहते वो आबाद।।
सुनते नहीं बुजुर्ग थे, जहाँ बहू के बोल।
आज वहाँ हर बात पर, होते खूब कलोल।।
बड़े बुजुर्गो का सदा, जो रखता है ध्यान।
बिन मांगे खुशियाँ मिले, बढ़ता है सम्मान।।
बड़े बुजुर्गों की नहीं, पूछे कोई खैर।
है एकल परिवार में, मात- पिता भी गैर।।
लाल बहादुर धन्य है
जन्मदिवस पर लाल के, सुनें एक फ़रियाद।
सौरभ सदा बहादुर की, सीखों को रख याद ।।
करो-मरो की गूँज से, गूँजा हिन्दुस्तान।
सैनिक औ किसान बढे, बनी शक्ति पहचान ।।
लाल बहादुर ने करी, देश हितों की आस।
मगर कपटियों को कभी, आई ना वो रास ।।
फर्ज निभाते थे सदा, दीन -दुखी -हितकार ।
लाल बहादुर थे यहाँ, सच्चे पहरेदार ।।
छलकी आज किसान के, अंतर्मन की पीर।
लाल बहादुर के बिना, सौरभ आज अधीर ।।
लाल बहादुर धन्य है, नमन तुम्हें सौ बार।
सत्ता से पहले किया, जन्म भूमि से प्यार ।।
भारत माता पूछती, आज कहाँ है लाल।
कृषक बिना बहादुर के, चिंतित है बेहाल ।।
भारत का अभिमान वह, आन-बान- सम्मान।
लाल बहादुर से ही है, आज देश की शान ।।
पैदा क्यों होते नहीं, भगत सिंह से लाल
भगत सिंह, सुखदेव क्यों, खो बैठे पहचान।
पूछ रही माँ भारती, तुम से हिंदुस्तान।।
भगत सिंह, आज़ाद ने, फूंका था शंख नाद।
आज़ादी जिनसे मिले, रखो हमेशा याद।।
बोलो सौरभ क्यों नहीं, हो भारत लाचार।
भगत सिंह कोई नहीं, बनने को तैयार।।
भगत सिंह, आज़ाद से, हो जन्मे जब वीर।
रक्षा करते देश की, डिगे न उनका धीर।।
मरते दम तक हम करे, एक यही फरियाद।
भगत सिंह भूले नहीं, याद रहे आज़ाद।।
मिट गया जो देश पर, करी जवानी वार।
देशभक्त उस भगत को, नमन करे संसार।।
भारत माता के हुआ, मन में आज मलाल।
पैदा क्यों होते नहीं, भगत सिंह से लाल।।
तड़प उठे धरती, गगन, रोए सारे देव।
जब फांसी पर थे चढ़े, भगत सिंह, सुखदेव।।
भगत सिंह, आज़ाद हो, या हो वीर अनाम।
करें समर्पित हम उन्हे, सौरभ प्रथम प्रणाम।।
आशाओं के रंग
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बने विजेता वो सदा, ऐसा मुझे यकीन।
आँखों में आकाश हो, पांवों तले जमीन।।
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तू भी पायेगा कभी, फूलों की सौगात।
धुन अपनी मत छोड़ना, सुधरेंगे हालात।।
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बीते कल को भूलकर, चुग डालें सब शूल।
बोयें हम नवभोर पर, सुंदर-सुरभित फूल।।
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तूफानों से मत डरो, कर लो पैनी धार।
नाविक बैठे घाट पर, कब उतरें हैं पार।।
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छाले पांवों में पड़े, मान न लेना हार।
काँटों में ही है छुपा, फूलों का उपहार।।
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भँवर सभी जो भूलकर, ले ताकत पहचान।
पार करे मझदार वो, सपनों का जलयान।।
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तरकश में हो हौंसला, कोशिश के हो तीर।
साथ जुड़ी उम्मीद हो, दे पर्वत को चीर ।।
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बैठा नाक गुरूर !!
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नई सदी ने खो दिए, जीवन के विन्यास !
सांस-सांस में त्रास है, घायल है विश्वास !!
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रिश्तों की उपमा गई, गया मनों अनुप्रास !
ईर्षित सौरभ हो गए, जीवन के उल्लास !!
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कहाँ हास-परिहास अब,और बातें जरूर !
मिलने ना दे स्वयं से, बैठा नाक गुरूर !!
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बोये पूरा गाँव जब, नागफनी के खेत !
कैसे सौरभ ना चुभे, किसे पाँव में रेत !!
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दीये से बाती रुठी, बन बैठी है सौत !
देख रहा हूँ आजकल,आशाओं की मौत !!
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कहाँ सत्य का पक्ष अब, है कैसा प्रतिपक्ष !
हाँक रहा हो स्वार्थ जब, बनकर सौरभ अक्ष !!
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सपने सारे है पड़े, मोड़े अपने पेट !
खेल रहा है वक्त भी, ये कैसा आखेट !!
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रख दे रिश्ते ताक पर, वो कैसे बदलाव !
षडयंत्रकारी जीत से, सही हार ठहराव !!
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पर्दा उठता झूठ का
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वक्त कराता है सदा, सब रिश्तों का बोध।
पर्दा उठता झूठ का, होता सच पर शोध।।
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लौटा बरसों बाद मैं, उस बचपन के गांव।
नहीं बची थी अब जहां, बूढ़ी पीपल छांव।।
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मूक हुई किलकारियां, गुम बच्चों की रेल।
गूगल में अब खो गये, बचपन के सब खेल।।
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धूल आजकल फांकता, दादी का संदूक।
बच्चों को अच्छी लगे, अब घर में बंदूक।।
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स्याही, कलम, दवात से, सजने थे जो हाथ।
कूड़ा-करकट बीनते, नाप रहे फुटपाथ।।
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चीरहरण को देखकर, दरबारी सब मौन।
प्रश्न करे अँधराज से, विदुर बने अब कौन।।
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सूनी बगिया देखकर, तितली है खामोश।
जुगनू की बारात से, गायब है अब जोश।।
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अंधे साक्षी हैं बनें, गूंगे करें बयान ।
बहरे थामें न्याय की, ‘सौरभ’ आज कमान ।।
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अपने प्यारे गाँव से, बस है यही सवाल ।
बूढा पीपल है कहाँ, कहाँ गई चौपाल ।।
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गलियां सभी उदास हैं, पनघट हैं सब मौन ।
शहर गए उस गाँव को, वापस लाये कौन ।।
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छुपकर बैठे भेड़िये, लगा रहे हैं दाँव ।
बच पाए कैसे सखी, अब भेड़ों का गाँव ।।
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नफरत के इस दौर में, कैसे पनपे प्यार ।
ज्ञानी-पंडित-मौलवी, करते जब तकरार ।।
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आज तुम्हारे ढोल से, गूँज रहा आकाश ।
बदलेगी सरकार कल, होगा पर्दाफाश ।।
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सरहद पर जांबाज़ जब, जागे सारी रात ।
सो पाते हम चैन से, रह अपनों के साथ ।।
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दो पैसे क्या शहर से, लाया अपने गाँव ।
धरती पर टिकते नहीं, अब ‘सौरभ’ के पाँव।।
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नई सदी ने खो दिए, जीवन के विन्यास ।
सांस-सांस में त्रास है, घायल है विश्वास ।।
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कौवे में पूर्वज दिखे
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कौन पूछता योग्यता, तिकड़म है आधार ।
कौवे मोती चुन रहे, हंस हुये बेकार ।।
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परिवर्तन के दौर की, ये कैसी रफ़्तार ।
गैरों को सिर पर रखें, अपने लगते भार ।।
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अंधे साक्षी हैं बनें, गूंगे करें बयान ।
बहरे थामे न्याय की, ‘सौरभ’ आज कमान ।।
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कौवे में पूर्वज दिखे, पत्थर में भगवान ।
इंसानो में क्यों यहाँ, दिखे नहीं इंसान ।।
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जब से पैसा हो गया, संबंधों की माप ।
मन दर्जी करने लगा, बस खाली आलाप ।।
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दहेज़ आहुति हो गया, रस्में सब व्यापार ।
धू-धू कर अब जल रहे, शादी के संस्कार ।।
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हारे इज़्ज़त आबरू, भीरु बुजदिल लोग ।
खोकर अपनी सभ्यता, प्रश्नचिन्ह पे लोग ।।
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अच्छे दिन आये नहीं, सहमा-सहमा आज ।
‘सौरभ’ हुए पेट्रोल से, महंगे आलू-प्याज ।।
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गली-गली में मौत है, सड़क-सड़क बेहाल ।
डर-डर के हम जी रहे, देख देश का हाल ।।
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लूट-खून दंगे कहीं, चोरी भ्रष्टाचार ।
ख़बरें ऐसी ला रहा, रोज सुबह अखबार ।।
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सास ससुर सेवा करे, बहुएं करती राज ।
बेटी सँग दामाद के, बसी मायके आज ।।
तेरी क्या औकात
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नई सदी में आ रहा, ये कैसा बदलाव ।
संगी-साथी दे रहे, दिल को गहरे घाव ।।
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हम खतरे में जी रहे, बैठी सिर पर मौत ।
बेवजह ही हम बने, इक-दूजे की सौत ।।
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जर्जर कश्ती हो गई, अंधे खेवनहार ।
खतरे में ‘सौरभ’ दिखे, जाना सागर पार ।।
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थोड़ा-सा जो कद बढ़ा, भूल गए वो जात ।
झुग्गी कहती महल से, तेरी क्या औकात ।।
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मन बातों को तरसता, समझे घर में कौन ।
दामन थामे फ़ोन का, बैठे हैं सब मौन ।।
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हत्या-चोरी लूट से, कांपे रोज समाज ।
रक्त रंगे अखबार हम, देख रहे हैं आज ।।
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कहाँ बचे भगवान से, पंचायत के पंच ।
झूठा निर्णय दे रहे, ‘सौरभ’ अब सरपंच ।।
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योगी भोगी हो गए, संत चले बाजार ।
अबलाएं मठ लोक से, रह-रह करे पुकार ।।
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दफ्तर,थाने, कोर्ट सब, देते उनका साथ ।
नियम-कायदे भूलकर, गर्म करे जो हाथ ।।
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मंच हुए साहित्य के, गठजोड़ी सरकार ।
सभी बाँटकर ले रहे, पुरस्कार हर बार ।।
बने संतान आदर्श हमारी
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूँ मैं।
सोच रहा हूँ जो बच्चा आये, उसका रूप, गुण सुना दूँ मैं।।
बाल घुंघराले, बदन गठीला, चाल, ढाल में तेज़ भरा हो।
मन शीतल हो ज्यों चंद्र-सा, ओज सूर्य सा रूप धरा हो।।
मन भाये नक्स, नैन हो, बातें दिल की बता दूँ मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूँ मैं।।
राह चले वो वीर शिवा की, राणा की, अभिमन्यु की।
शत्रुदल को कैसे जीते, सीख चुने वो रणवीरों की।।
बन जाये वो सच्चा नायक, ऐसे मंत्र पढ़ा दूँ मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूँ मैं।।
सीख सिख ले माँ पन्ना की, झाँसी वाली रानी की।
दुर्गावती -सा शौर्य हो, आबरू पद्मावत मेवाड़ी-सी।।
भक्ति में हो अहिल्या मीरा, ऐसी घुटकी पिलवा दूँ मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूँ मैं।।
पुत्र हो तो प्रह्लाद-सा, राह धर्म की चलता जाये।
ध्रुव तारा सा अटल बने वो, सबको सत्य पथ दिखलाये।।
पुत्री जनकर मैत्रियी, गार्गी, ज्ञान की ज्योत जलवा दूँ मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूँ मैं।।
सोच रहा हूँ जो बच्चा आये, उसका रूप, गुण सुना दूँ मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूँ मैं।।
शिक्षक तो अनमोल है
दूर तिमिर को जो करे, बांटे सच्चा ज्ञान।
मिट्टी को जीवित करे, गुरुवर वो भगवान।।
जब रिश्ते हैं टूटते, होते विफल विधान।
गुरुवर तब सम्बल बने, होते बड़े महान।।
नानक, गौतम, द्रोण सँग, कौटिल्या, संदीप।
अपने- अपने दौर के, मानवता के दीप।।
चाहत को पंख दे यही, स्वप्न करे साकार।
शिक्षक अपने ज्ञान से, जीवन देत निखार।।
शिक्षक तो अनमोल है, इसको कम मत तोल।
सच्ची इसकी साधना, कड़वे इसके बोल।।
गागर में सागर भरें, बिखराये मुस्कान।
सौरभ जिनको गुरु मिले, ईश्वर का वरदान।।
शिक्षा गुरुवर बांटते, जैसे तरुवर छाँव।
तभी कहे हर धाम से, पावन इनके पाँव।।
अंधियारे, अज्ञान को, करे ज्ञान से दूर।
गुरुवर जलते दीप से, शिक्षा इनका नूर।।
लुटती जाए द्रौपदी
चीरहरण को देख कर, दरबारी सब मौन।
प्रश्न करे अँधराज पर, विदुर बने वो कौन।।
राम राज के नाम पर, कैसे हुए सुधार।
घर-घर दुःशासन खड़े, रावण है हर द्वार।।
कदम-कदम पर हैं खड़े, लपलप करे सियार।
जाये तो जाये कहाँ, हर बेटी लाचार।।
बची कहाँ है आजकल, लाज-धर्म की डोर।
पल-पल लुटती बेटियां, कैसा कलयुग घोर।।
वक्त बदलता दे रहा, कैसे- कैसे घाव।
माली बाग़ उजाड़ते, मांझी खोये नाव।।
घर-घर में रावण हुए, चौराहे पर कंस।
बहू-बेटियां झेलती, नित शैतानी दंश।।
वही खड़ी है द्रौपदी, और बढ़ी है पीर।
दरबारी सब मूक है, कौन बचाये चीर।।
लुटती जाए द्रौपदी,जगह-जगह पर आज।
दुश्शासन नित बढ़ रहे, दिखे नहीं ब्रजराज।।
छुपकर बैठे भेड़िये, लगा रहे हैं दाँव।
बच पाए कैसे सखी, अब भेड़ों का गाँव।।
नहीं सुरक्षित बेटियां, होती रोज शिकार।
घर-गलियां बाज़ार हो, या संसद का द्वार।।
सजा कड़ी यूं दीजिये, काँप उठे शैतान।
न्याय पीड़िता को मिले, ऐसे रचो विधान।।
लुटती जाए द्रौपदी, बैठे हैं सब मौन।
चीर बचाने चक्रधर, बन आए कौन।।
बोलचाल भी बंद
करें मरम्मत कब तलक, आखिर यूं हर बार।
निकल रही है रोज ही, घर में नई दरार।।
आई कहां से सोचिए, ये उल्टी तहजीब।
भाई से भाई भिड़े, जो थे कभी करीब।।
रिश्ते सारे मर गए, जिंदा हैं बस लोग।
फैला हर परिवार में, सौरभ कैसा रोग।।
फर्जी रिश्तों ने रचे, जब भी फर्जी छंद।
सगे बंधु से हो गई, बोलचाल भी बंद।।
सब्र रखा, रखता सब्र, सब्र रखूं हर बार।
लेकिन उनका हो गया, जगजाहिर व्यवहार।।
कर्जा लेकर घी पिए, सौरभ वह हर बार।
जिसकी नीयत हो डिगी, होता नहीं सुधार।।
घर में ही दुश्मन मिले, खुल जाए सब पोल।
अपने हिस्से का जरा, सौरभ सच तू बोल।।
सौरभ रिश्तों का सही, अंत यही उपचार।
हटे अगर वो दो कदम, तुम हट लो फिर चार।।
रक्षा बंधन ये कहे
रक्षा बंधन प्रेम का, मनभावन त्यौहार।
जिससे भाई बहन में, नित बढ़े है प्यार।
बहनें मांगे ये वचन, कभी न जाना भूल।
भाई-बहना प्रेम के, महके हरदम फूल।।
रेशम की डोरी सजी, बहना की मनुहार।
रक्षा बंधन प्यार का, सुंदर है त्योहार।।
रक्षा बंधन प्यार का, निश्छल पावन पर्व।
करती बहने हैं सदा, निज भाई पर गर्व।।
भाई बहना प्रेम का, सालाना त्यौहार।
बांटे लाड दुलार की, खुशियां अपरम्पार।।
रक्षा बंधन पर करें, बहनें सारी नाज।
देखे भाई कीर्तियाँ, खुशियां झलके आज।।
करती बहने विनतियाँ, सौरभ ये हर साल।
आए कोई भी समय, भैया उनकी ढाल।।
रक्षा बंधन पर्व पर, मन की गांठे खोल।
भाई-बहन स्नेह से, कर दें घर अनमोल।।
रक्षा बंधन ये कहे, बात यही हर बार।
सच्चा पवन प्यार ये, झूठा जग का प्यार।।
आये नेता द्वार
बजी दुंदभी वोट की, आये नेता द्वार।
भाईचारा बस रहे, मन में करो विचार।।
इतनी भी ना बहक हो, चुनाव के मधुमास।
रिश्तों का रोना लिखे, मितवा बारहमास।।
धन-बल-पद के लोभ की, छोड़े सौरभ प्रीत।
जो नेता जनहित करे, वोट उसे हो मीत ।।
वोट करो सब योग्य को, दाब, राग दे छोड़।
जाति-पाति की भावना, के बंधन सब तोड़।।
मूल्य वोट का है बहुत, वोट बड़ा अनमोल।
देना किसको वोट है, सौरभ मन से तोल।।
सत्ता का ये खेल है, करे प्रपंच हज़ार।
बस अपना मत देखिये, रखे सलामत प्यार।।
वोट बड़ा अनमोल है, करो न इसका मोल।
मर्जी है ये आपकी, पड़े न इसमें झोल।।
जिनकी-जिनकी वोट हैं, सुनो आज ये बात।
नेता सारे दोगले, भिड़े न हम बिन बात।।
मत पाने की होड़ में, सुन लो मेरे मीत।
भाईचारा बस रहे, मिले हार या जीत।।
अटल अटल पथ पर रहे
प्रसिद्ध कवि अति लोकप्रिय,पूजनीय इंसान।
अटल बिहारी देश के, रहे विभूति महान।।
अटल बिहारी ने दिए, भारत को प्रतिमान।
मानें उनको आज हम, फिर से बने महान।।
दुश्मन के दिल में बसे, करते हृदय शुद्ध।
देख अटल की शक्तियां, हँस दिए थे बुद्ध।।
रार नहीं ठानी कभी, मानी कभी न हार।
अटल अटल-सी होड़ थे, किये काल पर वार।।
राजनीति का अर्थ नव, शासन के दिनमान।
अटल अटल पथ पर रहे, सतत रहे गतिमान।।
देशहित में लगे रहे, पल-पल किए प्रयत्न।
सत्यमेव थे आप ही, सचमुच भारत रत्न।।
तुंग गिरि के शिखर चढ़े, अटल धीर गम्भीर।
विश्व मंच हिंदी बढ़ी, खींची अटल लकीर।।
अटल हमारे अटल है, अटल रहे निर्बाध।
छाप अटल जो रच गए, दिल में है आबाद।।
ऋणी रहे ये आपका, सौरभ हिंदुस्तान।
मरकर भी हैं कब मरे, अटल सपूत महान।।
उड़े तिरंगा बीच नभ
आज तिरंगा शान है, आन, बान, सम्मान।
रखने ऊँचा यूँ इसे, हुए बहुत बलिदान।।
नहीं तिरंगा झुक सके, नित करना संधान।
इसकी रक्षा के लिए, करना है बलिदान।।
देश प्रेम वो प्रेम है, खींचे अपनी ओर।
उड़े तिरंगा बीच नभ, उठती खूब हिलोर।।
शान तिरंगा की रहे, दिल में लो ये ठान।
हर घर, हर दिल में रहे, बन जाए पहचान।।
लिए तिरंगा हाथ में, खुद से करे सवाल।
देश प्रेम के नाम पर, हो ये ना बदहाल।।
लिए तिरंगा हाथ में, टूटे नहीं जवान।
सीमा पर रहते खड़े, करते सब बलिदान।।
लाज तिरंगा की रहे, बस इतना अरमान।
मरते दम तक मैं रखूँ, दिल में हिंदुस्तान।।
सदा तिरंगा यूं लहराये
दुश्मन को ये धूल चटाये।
विश्व विजेता बनता जाये।
आसमान को छूकर आये,
सदा तिरंगा यूं लहराये।।
वीरों की आन बान है ये।
मातृभूमि की शान है ये।
भारत की पहचान है ये,
बच्चों को ये बात बताये।
सदा तिरंगा यूं लहराये।।
लिए समृद्धि रंग हरा है।
केसरिया कुर्बानी भरा है।
और सफ़ेद शांति धरा है,
चक्र नीला प्रगति लाये।
सदा तिरंगा यूं लहराये।
इस झंडे की साख बड़ी है।
आजादी की बात जुडी है।
झंडे से ही कसम खड़ी है,
इस खातिर सब मर मिट जाये।
सदा तिरंगा यूं लहराये।।
बच्चों झंडा ध्येय हमारा।
ये ही तन मन धन है सारा।
प्यारा भारत देश हमारा,
विश्व विजेता बनता जाये।
सदा तिरंगा यूं लहराये।।
हरियाली तीज
सावन में है तीज का, एक अलग उल्लास |
प्रेम रंग में भीग कर, कहती जीवन खास | |
जैसे सावन में सदा, होती खूब बहार |
ऐसे ही हर घर सदा, मने तीज त्योहार | |
हाथों में मेंहदी रची, महक रहा है प्यार |
चूड़ी, पायल, करधनी, गोरी के श्रृंगार | |
उत्सव, पर्व, समारोह है, ये हरियाली तीज |
आती है हर साल ये, बोने खुशियां बीज | |
अगर हमीं बोते रहे, राग- द्वेष के बीज |
होंगे फीके प्रेम बिन, सावन हो या तीज ||
बोए मिलकर हम सभी, अगर प्रेम के बीज |
रहे न चिन्ता दुख कभी, हर दिन होगी तीज ||
प्यार-प्रेम सिंचित करें, हृदय यूं दे बीज |
हरी-भरी हो जिंदगी, तभी सफल हो तीज ||
भावहीन अब हो रहे, सभी तीज त्यौहार |
लगे प्यार के बीज यदि, मिटे दिलों की रार | |
सावन झूले हैं कहाँ, और कहाँ है तीज |
मन में भरे कलेश के, सबके काले बीज | |
मन को ऐसे रंग लें, भर दें ऐसा प्यार |
हर पल हर दिन ही रहे, सावन का त्यौहार | |
डॉo सत्यवान सौरभ
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,
हरियाणा
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