Jidhar dekho lahoo bikhra hua hai

जिधर देखो लहू बिखरा हुआ है | Ek ghazal

जिधर देखो लहू बिखरा हुआ है

( Jidhar dekho lahoo bikhra hua hai )

 

जिधर देखो लहूँ बिखरा हुआ है

नगर में आज फ़िर दंगा हुआ है

 

लगी है आग नफ़रत की दिलों में

यहाँ हर आशियाँ उजड़ा हुआ है

 

बहुत नजदीक था मेरे कभी जो

उसी से ख़त्म हर रिश्ता हुआ है

 

वो सच्ची बात कहता ही नहीं जो

ज़ुबां से आज फ़िर झूठा हुआ है

 

कभी जो काम मिल पाया न उनको

ग़रीबों के घर में फाका हुआ है

 

बहुत मुश्किल हुआ है अब गुजारा

सभी सामान फ़िर महंगा हुआ है

 

बतायें बात दिल की किस को आज़म

बिना मां के ये घर तन्हा हुआ है

 

 

❣️

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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