Footpath par

फुटपाथ पर | Footpath par

फुटपाथ पर

( Footpath par )

 

कभी
चल कर
आगे बढ़ कर
दो चार कदम
सड़कों पर
देखो तो,
दिख जायेंगे या
मिल जाएंगे
कुछ ऐसे लोग
फुटपाथ पर
खाते पीते सोते
बेफिक्र निडर होकर।
फिर कभी
चल कर
आगे बढ़ कर
दो चार कदम
देखो तो
गलियों में
जहां बसते हैं
बड़े लोग
अमीर लोग
चिंतित डरे हुए
बंद
दीवारों के बीच।
जीवन की सार्थकता
कहां और
किसमें है?
भौतिकता में?
या
भौतिकता से दूर
स्वछंदता और
स्वतंत्रता में?

रचनाकार रामबृक्ष बहादुरपुरी

( अम्बेडकरनगर )

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