कोई प्रहरी | Geet Koi Prahari
कोई प्रहरी
( Koi Prahari )
कोई प्रहरी काश लगा दे,ऐसा भी प्रतिबंध ।
किसी ओर से बिखर न पाये,धरती पर दुर्गंध ।।
दिया हमीं ने नागफनी अरु,बबूल को अवसर
क्यों बैठे हम शाँत रहे, सोचा कभी न इस पर
कभी तो कारण खोजो आये,कैसे यहाँ सुगंध ।।
गुलमोहर -कचनार-पकड़िया , आम -नीम-पीपल
आज चलो हम निश्चय करके,बोयें छाँव शीतल
वातावरण न दूषित हो सब ,खायें यह सौगंध ।।
जीवन में यह मधुर कल्पना ,होगी तब साकार
इक दूजे पर दोषारोपण, छोड़े यह संसार
जुड़े हुये हैं इक दूजे से,सुख-दुख के सम्बंध ।।
आज हमारे मन में है,कितनी घोर निराशा
तिमिर-कुण्ड में डूब गई है,जीवन की हर आशा
विश्वासों से टूट गये हैं,अपने सब अनुबंध ।।
साग़र थे विज्ञान जगत में,हम हीं सबसे आगे
ज्ञान धरोहर संजो न पाये,कितने रहे अभागे
हमने कभी लिखा तो होता ,अपना यहाँ निबंध ।।
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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