निगाहों की दास्तानें | Geet nigahon ki dastaane
निगाहों की दास्तानें
( Nigahon ki dastaane )
कभी निगाहें ज्वाला उगले, कभी नेह बरसाती है
नजरों का खेल निराला, कभी-कभी मुस्काती है।
कभी-कभी मुस्काती है
उमंग उल्लास भरे नैना, चमकते चांद सितारे से
झील सी आंखों में ठहरे, भाव सुनहरे प्यारे से।
नयनो की भाव भंगिमा, जाने क्या कह जाती है।
रस्ता ताक रही निगाहें, आओ तुम्हें बुलाती है।
कभी-कभी मुस्काती है
आड़ी तिरछी हुई निगाहें, कैसा कहर ढहा सकती।
सीधी-साधी नजरें भी, राज छिपाये यहां रखती।
कमल लोचन मृगनयनी, मनमोहक हो लुभाती है।
काली कजरारी आंखें, अक्सर तेवर कई दिखाती है।
कभी-कभी मुस्काती है
नाजो नखरे कई अदाएं, होती दास्तानें निगाहों की।
भृकुटियां तन सी जाए, कई कथाएं इन राहों की।
सावन की मंद फुहार सी, नजरें हृदय को छू जाती है।
दिल की धड़कनें गीत गाकर, मतवाली हो जाती है।
कभी-कभी मुस्काती है
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )